"बिखरे सपनो की किरचें घायल करती हैं,
शब्द खड़े हैं रस्तों में अब शातिर से
सहमा सा छाता अब व्याख्या करता है हर बादल की
पगडंडी के पाखंडी सच से गुजर रहे ग़मगीन समाजों के सच को भी देखो
तो बात करो बरसातों की
उसमें आंसू की बूँद तुम्हारी भी होगी." ----राजीव चतुर्वेदी
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