"विश्व में या यों कहूं कि सम्पूर्ण मानव सभ्यता में रक्षा बंधन जैसे पर्व कहीं नहीं हैं. नारी को केवल भोग्या समझने वाली संस्कृतियाँ देख लें कि भारतीय या यों कहें कि हिन्दू संस्कारों में नारी को उसके विभिन्न स्वरूपों में आदर दिया गया है. समाज में एक पुरुष और स्त्री के पति-पत्नी के परस्पर स्वाभाविक रिश्ते हैं...प्रेमी -प्रेमिका के भी रिश्ते हैं पर कितनो से ? --शेष वृहद् समाज में स्त्री-पुरुष संबंधों की सात्विकता को संबोधित करनेवाला यह एक मात्र पर्व है. रक्षा बंधन की बधाई !!" ----राजीव चतुर्वेदी
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सामाजिक संस्कारों का सृजन तथा निर्माण स्त्री करती है और उनका अनुपालन
करवाना , रक्षा करना पुरुषों की जिम्मेदारी होती है . ...हम रक्षा बंधन
जैसे स्त्री -पुरुष की सात्विकता को संबोधित पर्व मनाते हैं ...हम साल में
दो बार नौ -नौ दिन नौ दुर्गाओं के प्रतीक
पर्व पर कन्याएं पूजते हैं ...वास्तव में अगर केवल इतना ही देखें तो हम
विश्व की महानतम संस्कृति हैं . लेकिन हम इतना ही क्यों देखें ? ...आगे
देखिये कहीं हम संस्कृति के रस्ते से पाखण्ड की पगडंडी पर तो नहीं चल पड़े ?
...या संस्कृति को विकृति बना रहे हों ?
रक्षा बंधन पर समान्तर सच यह भी है कि विश्व की हर सातवीं बाल वैश्य भारत की बेटी है . हर पंद्रह मिनट में एक बलात्कार हो रहा है . बलात्कार की घटनाओं ने संस्कृति को झकझोर कर रख दिया है .छोटी -छोटी बेटियाँ तक असुरक्षित हैं . हम पुलिस को और सरकारों को कोसने के अलावा कर ही क्या रहे हैं ? याद रहे स्त्री के प्रति हो रहे अपराधों में समाज की भूमिका पहले है , समाज की जवाबदेही अपराध होने के पहले है और पुलिस की भूमिका अपराध होने के बाद में . सड़क पर गूँज रही माँ -बहनों की गालियाँ , बलात्कार की घटनाएं , फुटकर रोजमर्रा की दिनचर्या बन चुकी अश्लील हरकतें /छेड़छाड़ हमारे समाज के पुरुषार्थ पर प्रश्नचिन्ह हैं . पर अधिकाशं अवसरों पर ताली दोनों हाथ से बज रही है . स्त्रीयों की भी जवाबदेही कम नहीं .
रक्षा बंधन पर बहने अपने -अपने भाइयों से वचन लें कि वह सार्वजनिक जगहों पर बहन की गाली का भजन करना बंद करंगे . ...बहने अपने -अपने आवारा भाइयों को नसीहतें दें और उनकी सख्त सामाजिक निगरानी करें और भाई अपनी बहनों अपनी बहनों से कहें तमीज से रहो तभी रक्षा का अनुबंध है . हर घर में अगर बहन भाई को संशोधित करें /सुधारें और भाई बहन को संशोधित करें सुधारें तो हमारी संस्कृति में निरंतर कमजोर होती मुरझाती शालीनता निखर जाएगी...समाज में बिखर जायेगी . हम सभी किसी न किसी के भाई -बहन हैं --- क्या हम ऐसा करना चाहते हैं ? ...कर सकेंगे ?--- इस सवाल की सलीब पर हमारी संस्कृति टिकी है . "
------ राजीव चतुर्वेदी
रक्षा बंधन पर समान्तर सच यह भी है कि विश्व की हर सातवीं बाल वैश्य भारत की बेटी है . हर पंद्रह मिनट में एक बलात्कार हो रहा है . बलात्कार की घटनाओं ने संस्कृति को झकझोर कर रख दिया है .छोटी -छोटी बेटियाँ तक असुरक्षित हैं . हम पुलिस को और सरकारों को कोसने के अलावा कर ही क्या रहे हैं ? याद रहे स्त्री के प्रति हो रहे अपराधों में समाज की भूमिका पहले है , समाज की जवाबदेही अपराध होने के पहले है और पुलिस की भूमिका अपराध होने के बाद में . सड़क पर गूँज रही माँ -बहनों की गालियाँ , बलात्कार की घटनाएं , फुटकर रोजमर्रा की दिनचर्या बन चुकी अश्लील हरकतें /छेड़छाड़ हमारे समाज के पुरुषार्थ पर प्रश्नचिन्ह हैं . पर अधिकाशं अवसरों पर ताली दोनों हाथ से बज रही है . स्त्रीयों की भी जवाबदेही कम नहीं .
रक्षा बंधन पर बहने अपने -अपने भाइयों से वचन लें कि वह सार्वजनिक जगहों पर बहन की गाली का भजन करना बंद करंगे . ...बहने अपने -अपने आवारा भाइयों को नसीहतें दें और उनकी सख्त सामाजिक निगरानी करें और भाई अपनी बहनों अपनी बहनों से कहें तमीज से रहो तभी रक्षा का अनुबंध है . हर घर में अगर बहन भाई को संशोधित करें /सुधारें और भाई बहन को संशोधित करें सुधारें तो हमारी संस्कृति में निरंतर कमजोर होती मुरझाती शालीनता निखर जाएगी...समाज में बिखर जायेगी . हम सभी किसी न किसी के भाई -बहन हैं --- क्या हम ऐसा करना चाहते हैं ? ...कर सकेंगे ?--- इस सवाल की सलीब पर हमारी संस्कृति टिकी है . "
------ राजीव चतुर्वेदी
" तेरी निगाहें रोज मेरे राखियाँ ही बांधती हैं
तेरी दुआएं रोज मेरे राखियाँ ही बांधती हैं
सूत्र संस्कारों का हो या समझ का
एक डोरे की जरूरत है भी क्या ?"
---- राजीव चतुर्वेदी
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"शताब्दियों भटकी वह भाई की तलाश में यूँ ही ,
हममें अगर भाई मिला होता तो बाबर हुमायूँ क्यों आते ?"
----- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
भाई बहन के प्यार का अनोखा पर्व..
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