Monday, May 28, 2012

भगवान् वही बन पाया जिसके हाथों में हथियार बहुत थे

"क़यामत तो उस दिन होगी
जिस दिन पूरी कायनात के क़त्ल हो चुके लोग एक साथ खड़े हो जायेंगे
और चीख कर पूछेंगे ---
भगवान् तू क्यों था कातिलों पर मेहरवान
किसी खुदा का खौफ अब मुझको नहीं
खून से सना यह खुदा तेरा है मेरा नहीं

फूल कली मकरंदों की तुम बात न करना,
इस कोलाहल में हत्यारे हमको हैं प्यारे
भगवान् वही बन पाया जिसके हाथों में हथियार बहुत थे
ह्त्या का अधिकार उसे था
शान्ति कभी पूजी थी हमने ?--- यह बतलाओ
भय का यह भूगोल समझ लो
सफदरजंग बड़ा कातिल था उसके नाम अस्पताल है
अल्लाह उनके लिए महान है घर- घर उनके सूफियान है
इतिहासों में दर्ज इमारत को तुम देखो
हर मजहब की दर्ज इबारत को तुम देखो
मजहब का हर हर्फ़ लहू से लिखने वालो
आंधी की दहशत से दीपक सहमे तो हैं
सच्चाई की शहतीरों पर तहरीरों को दर्ज करो तुम
क़त्ल हो चुके लोगों की रूहें चीख रही हैं
मंदिर की आवाज़े मस्जिद की नवाज की नैतिकता नृशंस है कितनी
कातिल को भगवान् बताने वालो बोलो ---यह मजहब तेरा है
मेरा कैसे होगा ?---मैं तो क़त्ल हुआ था
मेरे खून के धब्बे धर्म तुम्हें लगते हैं
शब्द हैं तेरे , संसद तेरी, शास्त्र तुम्हारे, शर्त तुम्हारी, सूत्र हैं तेरे ,शरियत तेरी
तुम शातिर हो, सूफियान हो, अल्लाह तुम हो, भगवान् हो
मैं ज्ञानी हूँ, मैं ही दानी बब्रूवाहन का आवाहन कौन करेगा ?
हर प्रबुद्ध के युद्ध को देखो ...हर टूटी प्रतिमा जो टूटी प्रेम की प्रतिमा सी दिखती है
क़त्ल कर दिए बच्चों पर जो बिलख रही हर औरत मुझको फातिमा सी दिखती है
क़त्ल हो चुके कर्ण से पूछो
धर्म -कर्म के बीच की दूरी आज उत्तरा के आंसू में उत्तर खोज रही है.
क़यामत तो उस दिन होगी
जिस दिन पूरी कायनात के क़त्ल हो चुके लोग एक साथ खड़े हो जायेंगे
और चीख कर पूछेंगे ---
भगवान् तू क्यों था कातिलों पर मेहरवान
किसी खुदा का खौफ अब मुझको नहीं
खून से सना यह खुदा तेरा है मेरा नहीं." ----राजीव चतुर्वेदी

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

शक्तिमान राज भी करता है, नियम भी बनाता है।

Kishore Nigam said...

युग की विसंगतियों से कराहती चीखती आत्मा राजनीतिक, पौराणिक ,ऐतिहासिक, भौगोलिक-- सभी संदर्भो पर दृष्टि पात करके अंततः शक्ति और क्रूरता की ही पूजा के सत्य को देख पाती है --"भगवान् वही बन पाया जिसके हाथों में हथियार बहुत थे " किन्तु इसके औचित्य को स्वीकार नहीं कर पाती और धिक्कार-स्वर-स्फोट के साथ अपना निर्णय सुनाती है --"खून से सना यह खुदा , तेरा है , मेरा नहीं " .
यह अंतरात्मा अभी भी हताश नहीं, न ही भय से निष्प्राण है -
"-किसी खुदा का खौफ अब मुझको नहीं"
और युग को, इतिहास को , वर्तमान को और समाज को चेतावनी देने का साहस रखती है ----
"क़यामत तो उस दिन होगी
जिस दिन पूरी कायनात के क़त्ल हो चुके लोग एक साथ खड़े हो जायेंगे
और चीख कर पूछेंगे ---
भगवान् तू क्यों था कातिलों पर मेहरवान"
........... निश्चय ही निर्भीक और अत्यंत मौलिक , मानवतावादी सोच का अन्यतम , अति प्रशंसनीय उदहारण है यह रचना.