" अखबारों में बिखरी हर आह दर्ज करो अब दस्तावेजों में,
सपनो की शवयात्रा का अब शोर यहाँ क्यों करते हो ?
यह संसद है शमसान हमारे सपनो की,
अगले चुनाव का इंतज़ार क्यों करते हो ?
राष्ट्रगान की धुन में घुन सा राष्ट्रपति,
इन चाटुकार का चर्चा तुम क्यों करते हो ?
लाल किले के कंगूरों पर चमगादड़ से लटके हैं
यदि आज़ादी अपनी है तो इनका इंतज़ार क्यों करते हो ?
काले धन को खा कर गोरे जो बन बैठे हैं लोग यहाँ
इन देश द्रोहियों का आदर तुम क्यों करते हो ?
बेटा किसान का सैनिक बन मरता है सीमा पर जा जा कर
नौकरशाही के गद्दारों के अधिकारों से तुम क्यों डरते हो ?" -----राजीव चतुर्वेदी
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