Tuesday, May 22, 2012

उसमें तू अपनी जिन्दगी के उजाले न तलाश

"शब्द जो मेरी कलम से छलके थे श्याही बन कर,
उसमें तू अपनी जिन्दगी के उजाले न तलाश.
शाम को सूरज ढला था खेत की जिस मेंड़ पर,
आने वाली पीढ़ियों के उसमें निबाले न तलाश.
हांफती सी जिन्दगी के रास्ते सुनसान से हैं,
इस सफ़र की शाम को पैरों में छाले न तलाश. "
                                     ------राजीव चतुर्वेदी