Thursday, May 31, 2012

दूर... बेहद दूर जिन्दगी की उन जख्मी सी मुडेरों पर



"तेरी याद की धुंधली सी तश्वीर में जो आंसू के धब्बे हैं ...मेरे हैं,
याद कर तैने जमाने की नज़रें चुरा कर एक दिन इसको पोंछा था अपने ही आँचल से
सफ़र में गुमशुदा मुझको न कहना
गुमराह तुम थीं सोच कर मुझको बताना सपने में
दूर... बेहद दूर जिन्दगी की उन जख्मी सी मुडेरों पर
फकत एक फाख्ता सी याद थी तेरी
न देखूं तो शर्माती और देखता था तो उड़ जाती थी कहीं
मैं जानता हूँ तुम नहीं हो
तेरी याद तो है जुगनुओं सी टिमटिमाती रोज कहती है मुझे अब भूल जाओ
मत कुरेदो अब इन्हें यह जख्म हैं मेरे जिन्हें रखा है मैंने बेहद हिफाज़त से
इस जख्म से जो रिस रहा है खून मत कहना उसे वह याद है तेरी
अमानत हैं तेरी वह याद जो तैरती हैं मेरी आँखों में तारों सी
मत कहो आंसू उसे... मैं रो दूंगा
तू अब महज तश्वीर है और में मुजस्सम तश्विया, ---यह दौर ऐसा है." -----राजीव चतुर्वेदी


9 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

गजब की तस्वीर, शब्दों की भी..

udaya veer singh said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति!

मेरा मन पंछी सा said...

सुन्दर तस्वीर के साथ भाव विभोर करती बेहतरीन रचना...

दिलीप said...

waah sir waah..bahut khoob...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

क्या ही चित्र खींचा है आपने.... सुंदर...
सादर बधाई।

Anamikaghatak said...

utkrisht prastuti

Unknown said...

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति !आपके काव्य का, आपके लेखोँ का प्रशंसक हूँ , और नियमित रूप से पढता हूँ !
अनिल कुमार सक्सैना

Kishore Nigam said...

"अमानत हैं तेरी वह याद जो तैरती हैं मेरी आँखों में तारों सी
मत कहो आंसू उसे... मैं रो दूंगा"
------दिल में गहरे समां जाने वाली अनुपम , अपूर्व अभिव्यक्ति

Amod Kumar Srivastava said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति ...