Saturday, August 30, 2014

डूब कर अपने अँधेरे में

"पूरा सूरज
चाँद समूचा
थोड़े तारे आवारा से
डूब गए हैं मुझ में सारे
पर्वत पर पिघलती वर्फ अब सहमी हुयी है सर्द रातों में
समंदर की सतह अब शांत सी दिखने लगी है
धुंआ उठता था जो चिता पर वह भी उड़ गया है
अंत का सन्देश ले कर अपने अनंतों में
मैं वहीं हूँ , तुम वहीं हो
कौन था ?

क्या हो गया ?
क्या खो गया ? चीख कर इस शान्ति में
और इस कलकल सी बहती नदी के किनारे
एक रिश्ता मर चुका है डूब कर अपने अँधेरे में ."

----- राजीव चतुर्वेदी

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