Monday, August 4, 2014

मैं मर गया हूँ ...मेरे अन्दर अभी ज़िंदा बहुत कुछ है

" तमाम बातें
याद कुछ ओझल सी, बहुत सी वारदातें
भीड़ में कुछ चेहरे अपने से
कुछ राग, कुछ रंग, कुछ रंजिश अधूरी सी
हादसे हैरान करते से

चन्द अपने ...थोड़े सपने ...खो गए से ख्वाब कुछ
कुछ इमारत, कुछ इबारत, कुछ शरारत
और वह उसकी पलक ओढ़े निगाहें प्यार लेकर, सबसे बच कर मुझ तक पंहुचती सी
मैं मर गया हूँ
मेरे अन्दर अभी ज़िंदा बहुत कुछ है .
"
---- राजीव चतुर्वेदी

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