"तुम्हारे अन्दर के वीराने और बाहर के कोलाहल के बीच
अभी भी कुछ शब्द पड़े हैं लाबारिस से
उन्हें उठाओ
सूंघो प्यार से
सभ्यता की सुगंध
बजाओ उन शब्दों को तो गूँज उठेगा एक संगीत
शब्दों को चुन चुन कर चिनाई करो तो स्थापत्य होगा
शब्दों से वार करो हथियार होंगे
शब्दों को संस्कार दो साहित्य बनेगा
पर याद रहे हर शब्द की एक आयु होती है
और उसके बाद साहित्य की परिपाटी रोती है
कागजों में दर्ज है शब्दों के वंशजों का तस्करा
कुछ शब्द अभी दर्ज होने हैं कागजों पर
और उसके बाद ऋतुएं ,गंध ,उदासी अपने उनवान खोजेंगी
तुम्हारे अन्दर के वीराने और बाहर के कोलाहल के बीच
अभी भी कुछ शब्द पड़े हैं लाबारिस से
उन्हें उठाओ ." ---- राजीव चतुर्वेदी
अभी भी कुछ शब्द पड़े हैं लाबारिस से
उन्हें उठाओ
सूंघो प्यार से
सभ्यता की सुगंध
बजाओ उन शब्दों को तो गूँज उठेगा एक संगीत
शब्दों को चुन चुन कर चिनाई करो तो स्थापत्य होगा
शब्दों से वार करो हथियार होंगे
शब्दों को संस्कार दो साहित्य बनेगा
पर याद रहे हर शब्द की एक आयु होती है
और उसके बाद साहित्य की परिपाटी रोती है
कागजों में दर्ज है शब्दों के वंशजों का तस्करा
कुछ शब्द अभी दर्ज होने हैं कागजों पर
और उसके बाद ऋतुएं ,गंध ,उदासी अपने उनवान खोजेंगी
तुम्हारे अन्दर के वीराने और बाहर के कोलाहल के बीच
अभी भी कुछ शब्द पड़े हैं लाबारिस से
उन्हें उठाओ ." ---- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
जीवन शासित, शब्द प्रभावी।
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