"मैं शब्द की चादर ओढ़ कर सच में सोया था
कुछ शब्द उस पर आ गिरे थे फूल के जैसे,--- रखे थे तुमने क्या ?
कुछ शब्द दिल को छू गए थे पर क्या करूँ
महसूस होने के लिए ज़िंदा होना जरूरी था
और मैं शब्द की चादर ओढ़ कर सच में सोया था
निःशब्द से संवाद शब्दों का
सुनो अब आत्मा अंगड़ाई लेती है
और तुम आत्मीय यदि हो तो
शब्द की सच में जरूरत है भी क्या ?" --- राजीव चतुर्वेदी
कुछ शब्द उस पर आ गिरे थे फूल के जैसे,--- रखे थे तुमने क्या ?
कुछ शब्द दिल को छू गए थे पर क्या करूँ
महसूस होने के लिए ज़िंदा होना जरूरी था
और मैं शब्द की चादर ओढ़ कर सच में सोया था
निःशब्द से संवाद शब्दों का
सुनो अब आत्मा अंगड़ाई लेती है
और तुम आत्मीय यदि हो तो
शब्द की सच में जरूरत है भी क्या ?" --- राजीव चतुर्वेदी
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