Thursday, April 18, 2013

अब ज़मीर स्मरण की नहीं संस्मरण की चीज है

"जब मेरा जमीर मर चुका था
तब मेरे यहाँ शब्दों ने जन्म लिया
ज़मीर तो मर चुका था सो उसका ही अभाव था
मेरे शब्द जागीर के प्रभाव और ज़मीर के अभाव में बड़े हुए
आज मेरे शब्द ज़मीर ज़मीर जपते हैं
यह सभ्यता के सैधांतिक कुपोषण की कहानी है
मैं जानता हूँ तुम्हारा भी ज़मीर बहुत पहले ही मर गया था
अब ज़मीर स्मरण की नहीं संस्मरण की चीज है
ज़मीर की दुहाई देती मेरी बात तुम्हें जरूर अच्छी लगेगी
जिसके पास जो नहीं होता उसको उसकी ही जरूरत जो होती है ."
-----राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

शब्द आपकी मूल संरचना निकाल लायेंगे।