"मेरी हथेली पर
पता नहीं किसने
कुछ रेखाएं खींच दी थीं
मेरे जन्म से शुरू हो कर मेरी उम्र बताती जीवन रेखा
जिन्दगी के तमाम पर्वतों को लांघ कर मृत्यु तक जाती जीवन रेखा
मैं एक यात्री हूँ
जीवन रेखा के आख़िरी छोर की ओर बढ़ता हुआ ...साल दर साल
मैं जिन्दगी को जी कर गुजर जाऊंगा परिदृश्य की तरह
मृत्यु के सफ़र पर निकला सैलानी
सफ़र पूरा होने से इतना डरता क्यों है ?
अपनी हथेली में बंद जीवन रेखा को आज़ाद कर दिया है मैंने
मुझे नहीं चाहिए तेरी जिन्दगी
मुझे चाहिए अपनी मौत
उस पर हक़ है मेरा
बटोर ले अपनी दुनियाँ निखरी है बहुत
बटोर ले अपनी दुनियाँ बिखरी है बहुत
बटोर ले अपनी दुनियाँ अखरी है बहुत .." ---- राजीव चतुर्वेदी
पता नहीं किसने
कुछ रेखाएं खींच दी थीं
मेरे जन्म से शुरू हो कर मेरी उम्र बताती जीवन रेखा
जिन्दगी के तमाम पर्वतों को लांघ कर मृत्यु तक जाती जीवन रेखा
मैं एक यात्री हूँ
जीवन रेखा के आख़िरी छोर की ओर बढ़ता हुआ ...साल दर साल
मैं जिन्दगी को जी कर गुजर जाऊंगा परिदृश्य की तरह
मृत्यु के सफ़र पर निकला सैलानी
सफ़र पूरा होने से इतना डरता क्यों है ?
अपनी हथेली में बंद जीवन रेखा को आज़ाद कर दिया है मैंने
मुझे नहीं चाहिए तेरी जिन्दगी
मुझे चाहिए अपनी मौत
उस पर हक़ है मेरा
बटोर ले अपनी दुनियाँ निखरी है बहुत
बटोर ले अपनी दुनियाँ बिखरी है बहुत
बटोर ले अपनी दुनियाँ अखरी है बहुत .." ---- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
जितना झेलना लिखा है, दुनिया वाले बिना दिखाये भेंजेंगे नहीं।
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