"संशयों में शब्द सीमित ही तो रहते हैं
ये तुमने क्या कहा ?
भावनाओं को कहीं नज़दीक से छूकर गुजरती
स्पर्श-रेखा सी तुम्हारी याद
शून्य में संगीत देती है
मेरे खून से भी खूबसूरत याद तेरी
मेरे दिल के दरवाजे पर दस्तक दे रही है
और इस धडकनों के शोर में
तेरे अहसास का संगीत आकार लेता है
सुना है समंदर अपने किनारों से टकरा कर
अक्सर लौट जाता है ." -----राजीव चतुर्वेदी
ये तुमने क्या कहा ?
भावनाओं को कहीं नज़दीक से छूकर गुजरती
स्पर्श-रेखा सी तुम्हारी याद
शून्य में संगीत देती है
मेरे खून से भी खूबसूरत याद तेरी
मेरे दिल के दरवाजे पर दस्तक दे रही है
और इस धडकनों के शोर में
तेरे अहसास का संगीत आकार लेता है
सुना है समंदर अपने किनारों से टकरा कर
अक्सर लौट जाता है ." -----राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
विस्तार तो संशय सुलझा देता है..
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