Tuesday, July 8, 2014

एक दिन... जब तुम

"एक दिन ...
जब मुझसे मिल कर तुम्हें लगा था
कि तुम अकेले नहीं हो
दरअसल मैं उस दिन बहुत अकेला था
लेकिन तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ
तुम्हारी बड़ी सी जिन्दगी में एक दिन ...

एक दिन...
जब तुम रोना चाहो
मुझे आवाज़ देना
मैं वादा नहीं करता
कि मैं तुम्हें हँसा दूंगा
अगर मैं तुम्हें अपने साथ न हँसा सका
तो तुम्हारे साथ रो तो सकता हूँ

एक दिन...
जब तुम्हारा मन सब कुछ छोड़ कर
कहीं दूर भाग जाने का हो
मुझे आवाज़ देना
मैं वादा तो नहीं करता
कि मैं तुमसे कह सकूंगा-- "रुको"
लेकिन मैं तुम्हारे साथ भाग तो सकता हूँ

एक दिन...
जब तुम्हारा मन किसी से भी बात करने का न हो
मुझे आवाज़ देना
मैं वादा करता हूँ
कि तुम्हारे पास जरूर आऊँगा दबे पाँव
आ कर चुपचाप बैठा रहूँगा तुम्हारा हाथ अपने हाथ में ले कर

एक दिन ...
जब तुम्हारा मन बाजार से खरीदना चाहे कुछ खुशी
पर तुम्हारे पास उतने पैसे न हों
मन मत मारना
मुझे आवाज़ देना
मैं आऊँगा और कहूँगा
पागल मैं अभी हूँ
और जब तक मैं हूँ तुझे उदास होने का हक़ नहीं है
मेरी शर्ट में जो जेब है तुम्हारी है

एक दिन...
जब जरूरत पड़ने पर
तुम मुझे आवाज़ दोगे
और उत्तर नहीं पाओगे

एक दिन ...
हर बार की तरह
तुम्हारी आवाज़ मुझ तक पंहुचेगी
लेकिन मैं नहीं आऊँगा
उस दिन तुम ही जल्दी से चले आना
जान जाना मैं अब नहीं रहा
एक दिन..." ---- राजीव चतुर्वेदी

3 comments:

रमा शर्मा, जापान said...

सुंदर अभिव्यक्ति

Rewa Tibrewal said...

sundar rachna....

Amrita Tanmay said...

बेहतरीन रचना..