Monday, July 14, 2014

कागजों की नाव से सिद्धांत तेरे

"सत्य के समुद्र में
कागजों की नाव से सिद्धांत तेरे
तैरते कुछ दूर तक फिर डूब जाते हैं

सुबह से शाम तक हम
चेहरे बदलते हैं
होठों पर लिपस्टिक की तरह मुस्कान लगाते हैं
फिर खुद से ऊब जाते हैं

सजी संवरी सी शामों में
मुखौटे सजाये घूमते फिरते तो हैं हम
रात होते ही
अपनों से अपनी ही तन्हाई
लुटने से बचाते हैं

और फिर
दिन भर बटोरे थे जो गम हमने
उन्हीं में से कुछ गम हम ओढ़ लेते हैं
और कुछ में डूब जाते हैं

सत्य के समुद्र में
कागजों की नाव से सिद्धांत तेरे
तैरते कम हैं अधिकतर डूब जाते हैं ."
----- राजीव चतुर्वेदी

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