"आश्वस्त रहो
अँधेरे अकादमी पुरुष्कार देने के लिए चमगादड़ की तलाश में हैं
बंद कर दो सभ्यता की सभी खिड़की झरोखे और रोशनदान
सूरज की सूरत से नफरत है इन्हें
सूर्य के संकोच से कुछ तितलियाँ दहशतजदा हैं
और तुम भी जानते हो --
रोशनी बिजली के बिल की हो या दिल की
कीमत तो चुकानी है
यह दौर ऐसा है यहाँ हर रोशनी बिकती है बाजारों में
हर उजाला तिरष्कृत है हर अँधेरा पुरष्कृत है
हर विकृति चमत्कृत है
चमगादड़ की चर्चा सुन कर सूरज सुबक-सुबक कर सो जाता है
सच की सरकारी ड्योढी को शाम ढले क्या हो जाता है
सहमी सी हर लालटेन को आंधी भी औकात बताती गुजर रही है
चमगादड़ के मानक कितने भ्रामक होंगे
किन्तु अन्धेरा अधिकारों का सृजन कर रहा
चमगादड़ के चालीसे पढ़ती तितली क्यों तुतलाती सी है ?"
-----राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
्हकीकत बयाँ करती एक सटीक व सार्थक रचना
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