"कबीर विद्रोही थे ...सत्यवादी थे ...बिना लाग लपेट के सच बोलते थे
...उनका व्यक्तित्व संत तुल्य था यह सभी बातें ठीक हैं ...पर कबीर ने 120
वर्षों की आयु में 1000 साल का ज्ञान समेट दिया यह बात अति रंजित है ...इस
एक हजार साल में पचास तरह के विज्ञान और उनकी नयी खोज शामिल हैं ...कबीर
कविता के शिल्प या विचार की कसौटी पर महान कवि नहीं थे ...कबीर महान
दार्शनिक भी नहीं थे कि उन्होंने नया दर्शन प्रतिपादित किया हो ...कबीर
महान प्रणेता या समाज सुधारक भी नहीं थे किन्तु कबीर इन सभी गुणों का एक
पॅकेज थे इसलिए विलक्षण और आदरणीय थे ...कबीर इस लिए भी आदरणीय थे कि
उन्होंने ज्ञान के अभिजात्य प्राचीर के किसी कोने को तोड़ा था ...लेकिन कबीर
सत्य /सुख /प्रेम /पराक्रम के उत्पादक थे या उपभोक्ता यह तो तय करना ही
होगा ...हाँ यह बात सही है कि जामुन खा कर भी होठ /गला नीला होजाता है पर
समाज का जहर पीने वाला ही नीलकंठ कहलाता है जामुन खाने वाला नहीं ...वह
एकमुश्त कबीर थे और हम सभी किश्तों में कबीर हैं ." ----राजीव चतुर्वेदी
3 comments:
सटीक बात कही आपने।
http://voice-brijesh.blogspot.com
अपनी सारी ख़ूबियों और सारी कमियों को बावजूद भी वे कबीर थे-अक्खड़,मस्तमौला और लापरवाह और ईमानदार:आज ऐसा कोई दिखाई नहीं देता!
समझने वाला सत्य..
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