Monday, May 4, 2015

सौंदर्य ...बड़ा सुन्दर सा शब्द है ...और रहस्यमयी भी ...हो भी क्यों नहीं ?


"सौंदर्य ...बड़ा सुन्दर सा शब्द है ...और रहस्यमयी भी ...हो भी क्यों नहीं ?

"नैसर्गिक सौंदर्य" एक तरफ है ...देवत्व की ओर जाता ...विकिरित होता ...आवरण नहीं आत्मा का ओज लिए ...और दूसरी तरफ ब्यूटी पार्लर के दरवाजे में घुसता निकलता ...किसी भूतनी सी शहनाज़ हुसैन को सुन्दर समझता "संसर्गिक सौंदर्य" है ... यह सौंदर्य विकिरित नहीं संक्रमित होता है ... बाहर से खींच कर अंदर ले जाना चाहता है ...संसर्ग की आकांक्षा का सौंदर्य । ... आस्था चैनल पर प्रस्तुति देने वाली शिवानी मुझे शहनाज़ हुसैन से
कई गुना सुन्दर लगती है ... शिवानी नैसर्गिक सौंदर्य का एक उदाहरण है और कोई करीना कपूर संसर्गिक सौंदर्य का ।...नैसर्गिक सौंदर्य की गरिमा उम्र के साथ बढ़ती जाती है और संसर्ग के सौंदर्य की गरिमा उम्र के साथ घटती जाती है ...दिन में भी घटती है और रात को और ज्यादा घटती है ...फिर आत्मा के गड्ढे आवरण यानी चमड़ी पर भी उभर आते हैं ...चमड़ी में सौंदर्य प्रसाधन कई तरह की पुट्टी भरते हैं रंग भरते हैं ...सौंदर्य अंदर से नहीं आ रहा बाहर से थोपा जा रहा है ।...सौंदर्य का उद्देश्य क्या है ? ...अँधेरे से प्रकाश की और ले जाना । वह कथित सौंदर्य जो प्रकाश से अँधेरे की ओर ले जाता हो .... लाइट ऑफ़ करने को उत्प्रेरित करता हो ...दिमाग की भी बत्ती गुल कर देता हो वह सौंदर्य नहीं छल है ...मरीचिका है ... संसर्गिक है ।...सावधान !...आगे ख़तरनाक मोड़ है ।"----- राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

अभिषेक शुक्ल said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति।