"मेरी कविता में चाँद चांदनी घुँघरू पायल घायल नहीं होते
मेरी कविता में रातरानी ,बेला , चिनार या कोई छिनार भी नहीं होते
मेरी कविता में मुम्बैया रण्डी भडुए तबले सारंगी भी नहीं होते
मेरी कविता में रात ढलते ही खौफजदा माएं होती हैं
मेरी कविता में पत्नी की आशाएं होती हैं
मेरी कविता में चन्दा को मुठ्ठी में कैद किये कुछ बच्चे होते हैं
मेरी कविता में सेना के मृत जवान पर परिजन रोते हैं
मेरी कविता में सूरज के साथ उठ खडा किसान होता है
मेरी कविता में अनुदान की कातर कतारें नहीं होतीं
अधिकार माँगता नौजवान होता है
मेरी कविता में शंका कम, समाधान होता है
मेरी कविता में आचरण होता है, आचरण का व्याकरण होता है
मेरी कविता में पर्यावरण होता है और उससे चिंतित तितली होती है
मेरी कविता में नागफनी के फूल, बबूलों के कांटे हैं
मेरी कविता में कुछ सपने भी हैं जो हमने बांटे हैं
मेरी कविता में वेदान्त नहीं, वेदना है
मेरी कविता में तुम्हारा रूप छल पर चढ़ा आवरण है
रूप अगर निश्छल है तो नुमाईश कैसी ?
रूप अगर आखेट का चुगा है तो उसकी भी तो बात हो जिसको तैने ठगा है
मेरी कविता में युद्ध है, कलह नहीं
मेरी कविता में प्रयास है, प्रलय नहीं
मेरी कविता में माँ है , पिता हैं , बहने हैं भाई हैं
दादा हैं दादी हैं स्मृतियाँ हैं
मेरी कविता में यंत्रों की गतियाँ हैं
मेरी कविता में कलकल बहती नदियाँ हैं
मेरी कविता में कलेंडर पर सूली में चढी सदियाँ हैं
मेरी कविता में अनुदान नहीं आन्दोलन हैं
कृपा बटोरने को फैले हुए हाथ नहीं, बंधी हुयी मुट्ठी है
मेरी कविता में उद्योगों की भट्टी है
मेरी कविता में सूना चूल्हा है, दहेजखोर दूल्हा है
मेरी कविता में राग है ,मेरी कविता में आग है
मेरी कविता में टूटते दायरे हैं ...ढहती हुयी दीवार हैं
और वह ईंट भी है जो हर क्रान्ति का आख़िरी हथियार है ." ----- राजीव चतुर्वेदी
मेरी कविता में रातरानी ,बेला , चिनार या कोई छिनार भी नहीं होते
मेरी कविता में मुम्बैया रण्डी भडुए तबले सारंगी भी नहीं होते
मेरी कविता में रात ढलते ही खौफजदा माएं होती हैं
मेरी कविता में पत्नी की आशाएं होती हैं
मेरी कविता में चन्दा को मुठ्ठी में कैद किये कुछ बच्चे होते हैं
मेरी कविता में सेना के मृत जवान पर परिजन रोते हैं
मेरी कविता में सूरज के साथ उठ खडा किसान होता है
मेरी कविता में अनुदान की कातर कतारें नहीं होतीं
अधिकार माँगता नौजवान होता है
मेरी कविता में शंका कम, समाधान होता है
मेरी कविता में आचरण होता है, आचरण का व्याकरण होता है
मेरी कविता में पर्यावरण होता है और उससे चिंतित तितली होती है
मेरी कविता में नागफनी के फूल, बबूलों के कांटे हैं
मेरी कविता में कुछ सपने भी हैं जो हमने बांटे हैं
मेरी कविता में वेदान्त नहीं, वेदना है
मेरी कविता में तुम्हारा रूप छल पर चढ़ा आवरण है
रूप अगर निश्छल है तो नुमाईश कैसी ?
रूप अगर आखेट का चुगा है तो उसकी भी तो बात हो जिसको तैने ठगा है
मेरी कविता में युद्ध है, कलह नहीं
मेरी कविता में प्रयास है, प्रलय नहीं
मेरी कविता में माँ है , पिता हैं , बहने हैं भाई हैं
दादा हैं दादी हैं स्मृतियाँ हैं
मेरी कविता में यंत्रों की गतियाँ हैं
मेरी कविता में कलकल बहती नदियाँ हैं
मेरी कविता में कलेंडर पर सूली में चढी सदियाँ हैं
मेरी कविता में अनुदान नहीं आन्दोलन हैं
कृपा बटोरने को फैले हुए हाथ नहीं, बंधी हुयी मुट्ठी है
मेरी कविता में उद्योगों की भट्टी है
मेरी कविता में सूना चूल्हा है, दहेजखोर दूल्हा है
मेरी कविता में राग है ,मेरी कविता में आग है
मेरी कविता में टूटते दायरे हैं ...ढहती हुयी दीवार हैं
और वह ईंट भी है जो हर क्रान्ति का आख़िरी हथियार है ." ----- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
मन की अग्नि को धधकने के लिये शब्द का आधार चाहिये, अद्भुत वर्णन।
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