"बचपन में मेला देखने जाता था
पिता जेब में खर्च करने को कुछ डाल देता था
...अब पिता नहीं है ...परमपिता तो है ...
जिन्दगी का मेला झमेला देखने निकला हूँ
उसने खर्च करने के लिए मेरी जेब में एक और साल २०१४ डाल दिया है
खर्च करूंगा शान से
खर्च करूंगा इत्मीनान से
कुछ आग , कुछ राग ,कुछ रंग ,कुछ रंजिशें, कुछ ख्वाब खरीदूंगा
कुछ ख्वाहिशें
कुछ अपनों की फ़रमाहिशें खरीदूंगा
जिन्दगी का मेला झमेला देखने निकला हूँ
लौट आऊँगा
मेरा इंतज़ार मत करना ." ----- राजीव चतुर्वेदी
पिता जेब में खर्च करने को कुछ डाल देता था
...अब पिता नहीं है ...परमपिता तो है ...
जिन्दगी का मेला झमेला देखने निकला हूँ
उसने खर्च करने के लिए मेरी जेब में एक और साल २०१४ डाल दिया है
खर्च करूंगा शान से
खर्च करूंगा इत्मीनान से
कुछ आग , कुछ राग ,कुछ रंग ,कुछ रंजिशें, कुछ ख्वाब खरीदूंगा
कुछ ख्वाहिशें
कुछ अपनों की फ़रमाहिशें खरीदूंगा
जिन्दगी का मेला झमेला देखने निकला हूँ
लौट आऊँगा
मेरा इंतज़ार मत करना ." ----- राजीव चतुर्वेदी
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