"जब
लोकतांत्रिक समुद्र -मंथन होता है तो सुर भी निकलता है , सुंदरियां भी ,
शौर्य भी , विष भी ,अमृत भी . सवाल यह है कि जन -गण -मन किसका चयन करता है ?
सवाल यह है कि सदैव सुविधा की घात में बैठे देवता कौन हैं ? राहू -केतु
कौन हैं ? कौन हैं हमारे घावों पर मरहम लगाने वाला महरबान धन्वन्तरी ? कौन
है अप्सरा ? अमृत पर कौन है घात में, किसके हाथ में है सुरा ? हम सही पहचान
कर सकें ...धोखा न खाएं . हर युग में एक शिव होता है जो समाज के फैले विष
को पीता है पर सुकरात की तरह मरता नहीं , जीता है .---- हम उस शिव को पहचान
सकें . --- शुभ कामना !!" ---- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
यह पहचान छिप जाये, भ्रम का जाल फैला है।
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