Monday, January 13, 2014

फ़सल ...

"फसल ...
खडी होने तक हर हरामखोर फासले पर रहता है
और अपने बच्चों से भी फसल से फासला रखने को कहता है
फसल की प्यास छीन कर वह स्वीमिंगपूल में पानी भरता है
फसल में शामिल है किसान की उदासी
फसल में शामिल है नहर की खंती
फसल में शामिल है सूरज की किरण और उसमें पकता हुआ किसान
फसल में शामिल है नीलगाय से जूझता किसान
फसल में शामिल है किसान का वह पसीना
जिसको क्या समझेगी कोई हरामखोर हसीना
फसल में शामिल है पाताल का पानी और थोड़ी ओस
फसल में शामिल है आढ़तिये की मक्कारी और किसान का जोश
कुछ हवा ...थोड़ी चांदनी ...सहेज के रखा गया किसान की बेटी का दहेज़
फसल में शामिल है किसान के बच्चे के मटमैले से सपने
फसल में शामिल हैं किसान के कुछ अपने
फसल में शामिल है टाट -पट्टी के स्कूल की भी न चुकाई गयी फीस
फसल में शामिल है गाय का रम्भाना ...बैल का मर जाना
...ट्रेक्टर की कमर तोडती किश्त
यों समझ लो कि फसल में पूरी सृष्टि और थोड़ी वृष्टि शामिल है
फसल में शामिल है पूरी की पूरी कायनात
फसल में नहीं शामिल हैं कोई अर्जुन ...कोई नागार्जुन ...हम और आप
हम शामिल हो जायेगे तो यह साहित्यिक लफ्फाजी कौन करेगा ?
फसल ...
खडी होने तक हर हरामखोर फासले पर रहता है
और अपने बच्चों से भी फसल से फासला रखने को कहता है . " ---- राजीव चतुर्वेदी

3 comments:

Kailash Sharma said...

दिल को छूती बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति...

Asha Joglekar said...

किसान का दर्द.....और उसकी फसल।

प्रवीण पाण्डेय said...

फसल समेटे, सारा सच।