"साल के अंत में उसने अनन्त शुभकामना दे दीं
और मुझको लगा शब्द आशय खो चुके हैं
ठहर जाओ जाते हुए समय के संबोधनों को स्थिर ही रहने दो
बहते हुए पानी पर इबारत कौन लिखता है
शिलालेखों को गौर से मैं देखता हूँ ...सोचता हूँ
पत्थर तो जड़ है लोग लिखते हैं यहाँ किस चेतना से अमरत्व पाने को
सुना है कब्र है उसकी शिलालेख को सिराहने रख के सोया है वह यहाँ
दूर शब्दों के प्रपंचों से प्रवाहित वह नदी देखो ...वह गंगा है
भाग्यवश भागीरथ मिल जायें तो यह पूछ लेना
बहती नदी सी चेतना आज भी उनका अनुसरण करती है
जो जागा था वह सूरज जख्मी हो कर सो गया है
कल सुबह सूरज जब जागे अर्ध्य दे देना उसे अधिकार है तेरा
भागीरथ की भावना तुझमें भी रहती है
नया क्या है ?
चेतना और वेदना बहती ही रहती है ...ठहर जाओ
भाग्य का हर श्रोत सोचता है ...पूछता है
इस सभ्यता का भागीरथ कहाँ है ?
साल के अन्त में अनन्त शुभकामना देते हुए यह भी बताओ
भाग्य का भागीरथ कहाँ है ? " ----- राजीव चतुर्वेदी
और मुझको लगा शब्द आशय खो चुके हैं
ठहर जाओ जाते हुए समय के संबोधनों को स्थिर ही रहने दो
बहते हुए पानी पर इबारत कौन लिखता है
शिलालेखों को गौर से मैं देखता हूँ ...सोचता हूँ
पत्थर तो जड़ है लोग लिखते हैं यहाँ किस चेतना से अमरत्व पाने को
सुना है कब्र है उसकी शिलालेख को सिराहने रख के सोया है वह यहाँ
दूर शब्दों के प्रपंचों से प्रवाहित वह नदी देखो ...वह गंगा है
भाग्यवश भागीरथ मिल जायें तो यह पूछ लेना
बहती नदी सी चेतना आज भी उनका अनुसरण करती है
जो जागा था वह सूरज जख्मी हो कर सो गया है
कल सुबह सूरज जब जागे अर्ध्य दे देना उसे अधिकार है तेरा
भागीरथ की भावना तुझमें भी रहती है
नया क्या है ?
चेतना और वेदना बहती ही रहती है ...ठहर जाओ
भाग्य का हर श्रोत सोचता है ...पूछता है
इस सभ्यता का भागीरथ कहाँ है ?
साल के अन्त में अनन्त शुभकामना देते हुए यह भी बताओ
भाग्य का भागीरथ कहाँ है ? " ----- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
ओह....बोलती हुई...आभार
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