"कृष्ण उस प्यार की समग्र परिभाषा है जिसमें मोह
भी शामिल है ...नेह भी शामिल है ,स्नेह भी शामिल है और देह भी शामिल है
...कृष्ण का अर्थ है कर्षण यानी खीचना यानी आकर्षण और मोह तथा सम्मोहन का
मोहन भी तो कृष्ण है ...वह प्रवृति से प्यार करता है ...वह
प्राकृत से प्यार करता है ...गाय से ..पहाड़ से ..मोर से ...नदियों के छोर
से प्यार करता है ...वह भौतिक चीजो से प्यार नहीं करता ...वह जननी (देवकी )
को छोड़ता है ...जमीन छोड़ता है ...जरूरत छोड़ता है ...जागीर छोड़ता है
...जिन्दगी छोड़ता है ...पर भावना के पटल पर उसकी अटलता देखिये --- वह माँ
यशोदा को नहीं छोड़ता ...देवकी को विपत्ति में नहीं छोड़ता ...सुदामा को
गरीबी में नहीं छोड़ता ...युद्ध में अर्जुन को नहीं छोड़ता ...वह शर्तों के
परे सत्य के साथ खडा हो जाता है टूटे रथ का पहिया उठाये आख़िरी और पहले
हथियार की तरह ...उसके प्यार में मोह है ,स्नेह है,संकल्प है, साधना है,
आराधना है, उपासना है पर वासना नहीं है . वह अपनी प्रेमिका को आराध्य मानता
है और इसी लिए "राध्य" (अपभ्रंश में हम राधा कहते हैं ) कह कर पुकारता है
...उसके प्यार में सत्य है सत्यभामा का ...उसके प्यार में संगीत है ...उसके
प्यार में प्रीति है ...उसके प्यार में देह दहलीज पर टिकी हुई वासना नहीं
है ...प्यार उपासना है वासना नहीं ...उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति
है और वासना देह की भौतिक अनुभूति इसी लिए वासना वैश्यावृत्ति है . जो इस
बात को समझते हैं उनके लिए वेलेंटाइन डे के क्या माने ? अपनी माँ से प्यार
करो कृष्ण की तरह ...अपने मित्र से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी बहन से
प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी प्रेमिका से प्यार करो कृष्ण की तरह ...
.प्यार उपासना है वासना नहीं ...उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और
वासना देह की भौतिक अनुभूति ." ----राजीव चतुर्वेदी
"मीरा ...जब भी सोचने लगता हूँ बेहद भटकने लगता
हूँ ...मीरा प्रेम की व्याख्या है प्रेम से शुरू और प्रेम पर ही ख़त्म
...प्रेम के सिवा और कहीं जाती ही नहीं. वह कृष्ण से प्यार करती है तो करती
है ...ऐलानिया ...औरों की तरह छिपाती नहीं घोषणा करती है
...चीख चीख कर ...गा -गा कर ...उस पर देने को कुछ भी नहीं है सिवा
निष्ठां के और पाना कुछ चाहती ही नहीं उसके लिए प्यार अर्पण है , प्यार
तर्पण है , प्यार समर्पण है , प्यार संकल्प है ...प्यार विकल्प नहीं
...मीरा कृष्ण की समकालीन नहीं है वह कृष्ण से कुछ नहीं चाहती न स्नेह , न
सुविधा , न वैभव , न देह , न वासना केवल उपासना ...उसे राजा कृष्ण नहीं
चाहिए, उसे महाभारत का प्रणेता विजेता कृष्ण नहीं चाहिए, उसे जननायक कृष्ण
नहीं चाहिए, उसे अधिनायक कृष्ण नहीं चाहिए ...मीरा को किसी भी प्रकार की
भौतिकता नहीं चाहिए .मीरा को शत प्रतिशत भौतिकता से परहेज है . मीरा को
चाहिए शत प्रतिशत भावना का रिश्ता . वह भी मीरा की भावना . मीरा को कृष्ण
से कुछ भी नहीं चाहिए ...न भौतिकता और न भावना , न देह ,न स्नेह , न वासना
...मीरा के प्रेम में देना ही देना है पाना कुछ भी नहीं . मीरा के प्यार की
परिधि में न राजनीती है, न अर्थशास्त्र न समाज शास्त्र . मीरा के प्यार
में न अभिलाषा है न अतिक्रमण . मीरा प्यार में न अशिष्ट होती है न विशिष्ठ
होती है ...मीरा का प्यार विशुद्ध प्यार है कोई व्यापार नहीं . जो लोग
प्यार देह के स्तर पर करते हैं मीरा को नहीं समझ पायेंगे ... वह लोग भौतिक
हैं ...दहेज़ ,गहने , वैभव , देह सभी कुछ भौतिक है इसमें भावना कहाँ ?
प्यार कहाँ ? वासना भरपूर है पर परस्पर उपासना कहाँ ? देह के मामले में
Give & Take के रिश्ते हैं ...तुझसे मुझे और मुझसे तुझे क्या मिला ?
--- बस इसके रिश्ते हैं और मीरा व्यापार नहीं जानती उसे किसी से कुछ नहीं
चाहिए ...कृष्ण से भी नहीं ...कृष्ण अपना वैभव , राजपाठ , ऐश्वर्य ,
भाग्वाद्ता , धन दौलत , ख्याति , कृपा ,प्यार, देह सब अपने पास रख लें
...कृष्ण पर मीरा को देने को कुछ नहीं है और मीरा पर देने को बहुत कुछ है
विशुद्ध, बिना किसी योग क्षेम के शर्त रहित शुद्ध प्यार ...मीरा दे रही है ,
कृष्ण ले रहा है .--- याद रहे देने वाला सदैव बड़ा और लेने वाला सदैव छोटा
होता है ....कृष्ण प्यार ले रहे हैं इस लिए इस प्रसंग में मीरा से छोटे
हैं और मीरा दे रही है इस लिए इस प्रसंग में कृष्ण से बड़ी है . उपभोक्ता को
कृतग्य होना ही होगा ...उपभोक्ता को ऋणी होना ही होगा कृष्ण मीरा के प्यार
के उपभोक्ता है उपभोक्ता छोटा होता है और मीरा "प्यार" की उत्पादक है .
मीरा को जानते ही समझ में आ जाएगा कि "प्यार " भौतिक नहीं विशुद्ध
आध्यात्मिक अनुभूति है . यह तुम्हारे हीरे के नेकलेस , यह हार , यह अंगूठी
, यह कार , यह उपहार सब बेकार यह प्यार की मरीचिका है . भौतिक है और प्यार
भौतिक हो ही नहीं सकता ...प्यार केवल देना है ...देना है ...और देना है
...पाना कुछ भी नहीं . ---मीरा को प्रणाम !!" ----- राजीव चतुर्वेदी
5 comments:
कान्हा का प्रेम, प्रेम की पूर्णता..
Very true! Extreme of Love is Krishna!
Waah..........prem ki apratim anubhuti tatha krishnamay ho jaane ke liye kotisah dhanyabad..
adbhut lekhan,too good Rajeev...
prem ki purnta........ ab mil pana sambhav hai kya ??
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