"मैं मरने के पहले एक बार चीखूंगा जरूर ,
तुम मरने के बहुत पहले ही चीखो
क्योंकि मरने के बाद आदमी नहीं चीखता
और अगर चीखा होता
तो शायद
इतनी जल्दी मरता भी नहीं
तमाम लोग जो ज़िंदा दिखते हैं, मर चुके हैं
इसी लिए चीखते ही नहीं
मैं चीखना चाहता हूँ
क्योंकि अब मैं मरना चाहता हूँ
और बता देना चाहता हूँ
मरना मेरी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है
और मरने से पहले चीखना सामाजिक जिम्मेदारी है
मेरा जन्म हुआ था तो तय था अब मुझे एक दिन मरना ही होगा
मेरी चीख में लिपटी है मेरी शेष बची जिन्दगी
जिसे मैं जीना चाहता था
तुम्हारी तरह
मैं अब तुम्हारी तरह जीना नहीं चाहता
मैं अब अपनी तरह मरना चाहता हूँ
आखिर क़त्ल होने के पहले चीखने का हक़ तो है मुझे
मेरी चीख वह अंतिम आवाज़ है जिससे शुरू होती है कातिल की पहचान
तमाम लोग जो ज़िंदा दिखते हैं, मर चुके हैं
इसी लिए चीखते ही नहीं
मैं चीखना चाहता हूँ
मेरे मरने के बाद मेरी शवयात्रा में शामिल लोग कहेंगे
यह शक्स मरने के पहले बेहद ज़िंदा था
और इसका आशय यह भी होगा कि
ज़िंदा लोग मरने के पहले ही बेहद मुर्दा हैंइसी लिए चीखते ही नहीं ." ----राजीव चतुर्वेदी
तुम मरने के बहुत पहले ही चीखो
क्योंकि मरने के बाद आदमी नहीं चीखता
और अगर चीखा होता
तो शायद
इतनी जल्दी मरता भी नहीं
तमाम लोग जो ज़िंदा दिखते हैं, मर चुके हैं
इसी लिए चीखते ही नहीं
मैं चीखना चाहता हूँ
क्योंकि अब मैं मरना चाहता हूँ
और बता देना चाहता हूँ
मरना मेरी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है
और मरने से पहले चीखना सामाजिक जिम्मेदारी है
मेरा जन्म हुआ था तो तय था अब मुझे एक दिन मरना ही होगा
मेरी चीख में लिपटी है मेरी शेष बची जिन्दगी
जिसे मैं जीना चाहता था
तुम्हारी तरह
मैं अब तुम्हारी तरह जीना नहीं चाहता
मैं अब अपनी तरह मरना चाहता हूँ
आखिर क़त्ल होने के पहले चीखने का हक़ तो है मुझे
मेरी चीख वह अंतिम आवाज़ है जिससे शुरू होती है कातिल की पहचान
तमाम लोग जो ज़िंदा दिखते हैं, मर चुके हैं
इसी लिए चीखते ही नहीं
मैं चीखना चाहता हूँ
मेरे मरने के बाद मेरी शवयात्रा में शामिल लोग कहेंगे
यह शक्स मरने के पहले बेहद ज़िंदा था
और इसका आशय यह भी होगा कि
ज़िंदा लोग मरने के पहले ही बेहद मुर्दा हैंइसी लिए चीखते ही नहीं ." ----राजीव चतुर्वेदी
5 comments:
ओजपूर्ण..शान्ति से मर जाना, कहाँ संभव है भला..
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
http://mushayera.blogspot.in/2011/05/dushyant-kumar.html
बहुत गहरी बात ..!
काफ़ी हद तक सही भी है...
~सादर!!!
बहुत गहरी बात ..!
काफ़ी हद तक सही भी है...
~सादर!!!
बहुत सुन्दर रचना
यदि चीखना शुरू कर दे तो आदमी आदमी की तरह जिए।
http://voice-brijesh.blogspot.com
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