"गूंगे लोगों से गुफ्तगू करते-करते थक गया हूँ मैं,
दीवारों से जब बात करो तो वह भी गूंजा करती है,
गद्दारों की पीढी सच के आगे रुकती है फिर सोचा करती है
इन आत्ममुग्ध लोगों में कविता क्या कहना ?
कऊओं की बस्ती में भी कोयल की कूक सवेरा करती है."
----राजीव चतुर्वेदी
दीवारों से जब बात करो तो वह भी गूंजा करती है,
गद्दारों की पीढी सच के आगे रुकती है फिर सोचा करती है
इन आत्ममुग्ध लोगों में कविता क्या कहना ?
कऊओं की बस्ती में भी कोयल की कूक सवेरा करती है."
----राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
कहने का धर्म निभाना है,
सुनने वाले को आना है।
आप करते रहिये कविता हम पढ़ते रहेंगे
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