Monday, September 3, 2012

कऊओं की बस्ती में भी कोयल की कूक सवेरा करती है

"गूंगे लोगों से गुफ्तगू करते-करते थक गया हूँ मैं,
दीवारों से जब बात करो तो वह भी गूंजा करती है,
गद्दारों की पीढी सच के आगे रुकती है फिर सोचा करती है
इन आत्ममुग्ध लोगों में कविता क्या कहना ?
कऊओं की बस्ती में भी कोयल की कूक सवेरा करती है."

             ----राजीव चतुर्वेदी

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कहने का धर्म निभाना है,
सुनने वाले को आना है।

anjana said...

आप करते रहिये कविता हम पढ़ते रहेंगे