Friday, February 13, 2015

मैं जानता हूँ मैं अकेला हूँ और तुम तनहा

"मैं जानता हूँ मैं अकेला हूँ और तुम तनहा,
बीच में बीती हुयी रातों में
ओस से गिरते हैं तमाम खूबसूरत से ख्याल
हमारे बीच सुबह उगता है एक सूरज
बताओ नाम क्या दूँ ?

बदनाम लोगों में
गुमनाम से रिश्ते
गुरेज की गलियों से गुजरे हैं गुजारिश से

तेरा नाम मेरे होंठ पर आ आ कर ठिठक जाता है क्यों ?
कार के शीशे पर बिखरी ओस पर मैं उँगलियों से तेरा नाम लिखता हूँ
कुछ के लिए गुमनाम सा
कुछ के लिए बदनाम सा
मेरे लिए अभिमान सा .
" ---- राजीव चतुर्वेदी

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