"वक्त जब टूट कर बिखरा
तो कुछ अखरा कुछ निखरा होगा ,
ऐतवार रख मेरे यार तू ज़िंदा है जिस्म से बाहर
जो मरा पडा है नसीब था तेरा
और जो ज़िंदा है उसको नियामत समझ लेना
जो मरा पडा है वह कर्ज था तेरा
रूह के फर्ज की फेहरिस्त बहुत लम्बी है
वक्त जब टूट कर बिखरा
तो कुछ अखरा कुछ निखरा होगा ,
ऐतवार रख मेरे यार तू ज़िंदा है जिस्म से बाहर ." ---- राजीव चतुर्वेदी
तो कुछ अखरा कुछ निखरा होगा ,
ऐतवार रख मेरे यार तू ज़िंदा है जिस्म से बाहर
जो मरा पडा है नसीब था तेरा
और जो ज़िंदा है उसको नियामत समझ लेना
जो मरा पडा है वह कर्ज था तेरा
रूह के फर्ज की फेहरिस्त बहुत लम्बी है
वक्त जब टूट कर बिखरा
तो कुछ अखरा कुछ निखरा होगा ,
ऐतवार रख मेरे यार तू ज़िंदा है जिस्म से बाहर ." ---- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
वाह. बहुत सुन्दर रचना.
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