Saturday, August 3, 2013

इसके लिए जरूरी है कार से मरना

" सिद्धांतों वेदान्तों की बातें मुझको क्या मालुम ?
मैं राशन की कतार की आख़िरी इकाई हूँ
मुझे हर वह व्यक्ति अभिजात्य लगता है
जो हाजमोला खरीदता है
मैं जानता हूँ भूख
धरती के पेट की हो
या
मेरे पेट की
ज्वालामुखी की तरह फटती है
और हवा में दूर तलक उछल जाते हैं कुछ शोले और ढेरों पत्त्थर
जल्दी ही एक आवारा पत्थर
तुम्हारी और आयेगा
पर तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा
बस
तुम्हारी कार का शीशा टूट जाएगा
तुम्हारा तो बीमा है
क्या भूख से मरने का भी कोई बीमा होता है ?
या
मेरे बच्चों को मेरे मरने के बाद ही कुछ मिल जाए
इसके लिए जरूरी है कार से मरना
कार से मरने वाले पर फर्क क्या पड़ता है
कि वह चलाते हुए मरा या चलते हुए ?
" ----- राजीव चतुर्वेदी  

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पेट भरा हो,
शब्द तभी गुड़गुड़ करते हैं।

Amrita Tanmay said...

मर्मस्पर्शी..

पूरण खण्डेलवाल said...

सटीक पंक्तियाँ !!

अनुपमा पाठक said...

प्रभावशाली अभिव्यक्ति!