Saturday, June 8, 2013

अंतिम चीख प्रथम कविता का उनवान लिखा करती है


"जहाँ एक के हाथ में हीरा हो और दूसरों के जिश्म पर जख्मों का जखीरा हो, तब क्या करोगे कलमकार ? ...चीखोगे या चुप रहोगे ? ...चीख को किसी भाषा, किसी परिभाषा, किसी अनुवाद की जरूरत नहीं ...वह मुकम्मल संवाद है .---इस संवाद का सूचकांक तय करेगा कि लेखक कितना सार्थक है ?"
"
कविता कुछ के लिए कथा है
कविता कुछ के लिए प्रथा है
कविता मेरे लिए व्यथा है
वारिश में भींगे कुछ लावारिश से शब्द हमारी सिसकी हैं ,
साहित्य का प्रयोजन
और आयोजन उनका
तुम्हारे लिए मनोरंजन है
और हमारे लिए
चीख का दस्तावेज़
व्याकरणों से दूर आचरणों को आकार दे रहा शब्दों से
आग्रह की अकादमी में तुम संग्रह करते हो विग्रह की कथित कवितायें
है कर्ज तो तुम पर करुणा का
पर फर्ज तुम्हारा फ़र्जी है
कविता की गुणवत्ता की यह भी तो एक कसौटी है
हर सिसकी पर सिसमोग्राफ हिले थोड़ा
शब्दों की सम्प्रेषणता से रिक्टर स्केल सहम जाए
सिंथेटिक साहित्य शून्य का सृजन किया करता है
तब अंतिम चीख प्रथम कविता का उनवान लिखा करती है ."

                                                   ---- राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

मन सिसके तो निकले कविता।