"भूत की भभूत तुम्हारे माथे पर लगी है ... "भूत" भूत की तरह तुम्हारे पीछे
पड़ा है । तुम उसकी कभी प्रतिभूति हो, कभी अनुभूति, कभी अभिभूत ।...
"वर्तमान" तुम हो ...तुम्हें अपना सफ़र तय करना है प्रतिमान बनो या
कीर्तिमान ... वर्तमान का नितांत वर्तमान समय ही तुम्हारे हाथ में है ।
भविष्य तुम्हारे हाथ में नहीं है ... भविष्य के विराट में तुम होगे भी
इसमें संदेह है ... होगे भी तो कितने छोटे से होगे यह भी नहीं पता । भविष्य
भविष्य के हाथ में है जिसमें ब्रम्हांड के सम्पूर्ण सृजन की हिस्सेदारी है
...सभी प्राणी ...सभी पदार्थ ...सभी के परस्पर रिश्ते तय करेंगे की भविष्य
में किस स्थान पर ,कितने किराए पर, कितने दिनों को तुम्हारी स्मृतियों को
स्थान दिया जाए."----- राजिव चतुर्वेदी
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