"आप उसे आत्मा कहें या एटम ...परमात्मा कहें या प्रोटोन ...त्रासदी कहें या
ट्रेजडी ...भाषाएँ कहाँ से शुरू हुईं ? कब और कैसे शुरू हुईं ? ...पर इतना
तो तय है कि सभी भाषाओं में परस्पर कोई रिश्ता है . भाषाओं पर एक नए शोध
के मुताबिक हिंदी, उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेजी जैसी कई ज़बानों का मूल प्राचीन
अनातोलिया या आज के तुर्की में है.न्यूजीलैंड के ऑकलैंड विश्वविद्यालय की
विकासवादी जीवविज्ञानी क्विनटिन एटकिंसन ने अपने शोध के दौरान पाया कि
इंडो-यूरोपीयन समूह की भाषाएँ पश्चिमी एशिया के एक ही इलाके
में पैदा हुई हैं. उनके अनुसार ऐसा क़रीब 8000 से 9500 हज़ार साल पहले हुआ
था. शोध के दौरान उन्होंने क़रीब 100 से ज़्यादा प्राचीन और समकालीन भाषाओं
का कंप्यूटर के माध्यम से अध्यन किया और पाया कि यह सभी भाषाएँ अनातोलिया
के इलाकों में पैदा हुई हैं. प्राचीन अनातोलिया का ज़्यादातर हिस्सा आज के
तुर्की में है. आज इस इलाके से निकली भाषाएँ दुनिया में तीन अरब लोगों
द्वारा पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में बोली जाती हैं. वैसे इन भाषाओं को
लेकर दो तरह के मत विज्ञानियों में प्रचलित हैं. एक मत को मानने वालों का
मानना है कि यह भाषाएँ मध्य एशिया में काले सागर के इर्द गिर्द पैदा हुईं
और वहां से आगे बढ़ते योद्धाओं के तलवारों के साथ पूरी दुनिया में फैलीं.
वहीं क्विनटिन एटकिंसन जैसे शोध कर्ताओं का मानना है कि यह भाषाएँ
अनातोलिया में पैदा हुईं और वहां से खेती करने वाले किसान इसे अपने हलों के
साथ लेकर पूरी दुनिया को बीजते आगे बढ़ गए. अपने शोध के लिए उन्होंने कई
भाषाओं के मिलते जुलते शब्दों का कंप्यूटर के माध्यम से विश्लेषण किया.
मसलन हिंदी का 'माँ', जर्मन में 'मुटर', रूसी में 'मात', फारसी में 'मादर'
और लैटिन में 'माटेरी' बन जाता है...और भारत के ग्रामीण इलाकों में
"म्ह्नतारी" . इन सभी शब्दों की जड़ में है इंडो यूरोपीयन भाषाओं का एक ही
शब्द 'मेहतर'. वहीं दूसरी तरफ़ इस नई खोज के विरोधियों का कहना है कि यह
भाषाएँ रथ और चक्कों के आविष्कार के बाद ही फ़ैल सकतीं थीं और यह क़रीब 3500
सालों पहले ही इजाद हुआ है.
वर्ष 2050 तक 90% मानव-भाषाएँ अपना अस्तित्व खो चुकी होंगी और कुल मानव-भाषाओं की 2/3 तो 22वीं शताब्दी में ही मारी जाएँगी। इसमें भारत की 197 भाषाएँ सम्मिलित हैं।" ---- राजीव चतुर्वेदी
वर्ष 2050 तक 90% मानव-भाषाएँ अपना अस्तित्व खो चुकी होंगी और कुल मानव-भाषाओं की 2/3 तो 22वीं शताब्दी में ही मारी जाएँगी। इसमें भारत की 197 भाषाएँ सम्मिलित हैं।" ---- राजीव चतुर्वेदी
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