"प्यार मेरे यार मैं भी करना चाहता था
मैं तुमसे मिलना चाहता था
पर किसी पार्क में नहीं
मैं चाहता था राजनीति की रणभूमि में हम मिलते
पर तुम्हें राजनीति पसंद नहीं
मैं चाहता था किसी शोध में हम मिलते
पर तुम्हें शोध पसंद नहीं
मैं कल्पना करता था कि
मैं रिक्शा चला रहा हूँ
और तुम मुट्ठी में बंद
अपने पिता की दौलत का एक नन्हा सा टुकड़ा लिए
घर से निकलती हो कॉलेज जाने को
मुझसे तय करती हो जिंदगी की दूरी के हिसाब से भाड़ा
पर तुमको मेहनत से कमाने वाले लोग पसंद नहीं
जिंदगी में मेहनत की गंध पर तुम मंहगा डियो स्प्रे करती हो
मैं तुमसे मिलना चाहता था
किसी चिंतन शिविर गोष्ठी या सेमीनार में
जहाँ राष्ट्र की दशा और दिशा पर चिंता हो
पर तुम्हें यह पसंद नहीं
मैं तुमसे मिलना चाहता था युद्ध के मैदान पर घायल लौट कर
मुझे अच्छा लगता कि
युद्ध से शेष बचा मैं जब लौटूँ
तो तुम कमसे कम अपना रूमाल मेरे घाव पर रख दोगी
मैं भरना चाहता था तुम्हारी माँग में अपने लहू के रँग
पर तुम्हें यह पसंद नहीं
मैं जानता हूँ तुम भी मुझे प्यार करती हो
पर अपनी माँग में
दूसरों का रँग मेरे लिए भरना चाहती हो
पर मुझे यह पसंद नहीं
मैं अपनी ख्वाहिशें अपने ख्वाब अपने ही खून के रंग से भरूंगा
और उसके लिए ताजिंदगी तिल तिल मरूँगा
विडम्बना यह कि
तुम मेरे साथ जीने आयी हो
और
मैं तुम्हारे साथ मरने आया हूँ ."---- राजीव चतुर्वेदी
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