"वही दर्द है ...वही दरवाजे ...वही डाकिया,
मुद्दतों से मुझे दस्तक का इंतज़ार है
हवा भी शैतान बच्चे सी सांकल हिला के भाग गयी
बंद लिफ़ाफ़े में खुले ख्वाब कोई छोड़ गया
हिचक मुझे भी थी पर मेरी हिचकियाँ बताती थीं
जिस तकिये में तश्वीर रखी थी उसकी
उस तकिये की तासीर तबस्सुम जैसी थी
और दिलों की धड़कन में जो पदचाप सुनाई देती थी वह तेरी थी
वही दर्द है ...वही दरवाजे ...वही डाकिया,
मुद्दतों से मुझे दस्तक का इंतज़ार है
हवा भी शैतान बच्चे सी सांकल हिला के भाग गयी
बंद लिफ़ाफ़े में खुले ख्वाब कोई छोड़ गया." -----राजीव चतुर्वेदी
मुद्दतों से मुझे दस्तक का इंतज़ार है
हवा भी शैतान बच्चे सी सांकल हिला के भाग गयी
बंद लिफ़ाफ़े में खुले ख्वाब कोई छोड़ गया
हिचक मुझे भी थी पर मेरी हिचकियाँ बताती थीं
जिस तकिये में तश्वीर रखी थी उसकी
उस तकिये की तासीर तबस्सुम जैसी थी
और दिलों की धड़कन में जो पदचाप सुनाई देती थी वह तेरी थी
वही दर्द है ...वही दरवाजे ...वही डाकिया,
मुद्दतों से मुझे दस्तक का इंतज़ार है
हवा भी शैतान बच्चे सी सांकल हिला के भाग गयी
बंद लिफ़ाफ़े में खुले ख्वाब कोई छोड़ गया." -----राजीव चतुर्वेदी
4 comments:
आहा खूबसूरत ख्यालों की ताबीर
संकेतों को समझ सके यदि,
काल तभी बतियाता है,
तब निशब्द में, सन्नाटे में,
आस-अंश सुलगाता है।
खुले ख्वाबो को जी लो ... उस तबस्सुम को चूम लो ...
लाजवाब रचना है ...
awesome....
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