"Single Parent ...सिंगल पेरेंट ... अरे , अकेले तो पेरेंट बने नहीं थे फिर क्या हो गया ? ... और जो हो गया सो हो गया ...आपके गलत निर्णय का खामियाजा आपके बच्चे क्यों भुगतें --- प्रायः इस अपराधबोध से शुरू होती है सिंगिल पेरेंट की कहानी ...जिसको अपराध बोध के साथ दायित्वबोध भी होता है वह सिंगिल पेरेंट का किरदार या जिम्मेदारी निभाता है ...चूंकि माँ प्राकृतिक संरक्षक होती है सो प्रायः माँ ही सिंगिल पेरेंट का दायित्व निभाती है या कभी कभी भुगतती है ...लव कुश की माँ सीता सिंगिल पेरेंट थी ...कर्ण की माँ कुन्ती सिंगिल पेरेंट थीं ... ईसा मसीह की माँ मैरी सिंगिल पेरेंट थीं ...शिवाजी की माँ जीजाबाई सिंगिल पेरेंट थीं ...झांसी की रानी लक्ष्मी बाई सिंगिल पेरेंट थी ...पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन खां की माँ सिंगिल पेरेंट थीं ...कमला नेहरू के बाद जवाहरलाल नेहरू इंदिरा गाँधी के सिंगिल पेरेंट थे और इंदिरा गाँधी राजीव तथा संजय गाँधी की सिंगिल पेरेंट थीं ...पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो बेनजीर के सिंगिल पेरेंट थे ...यह इतना महान काम भी नहीं की जितना महान बता कर कुछ लोग अपनी पीठ थपथापा रहे हैं ...प्यार की दैहिक अभिव्यक्ति का उत्पाद हैं बच्चे ...तो बच्चे तो होने ही थे ...हो गए ...कोई व्यक्ति अपने हाथ झाड़ कर चल दिया और किसी ने अपनी जिम्मेदारी निभाई ...जो हाथ झाड़ कर चल दिया वह निंदनीय है ...गैर जिम्मेदार है और जिसने अपनी जिम्मेदारी निभाई उसने महज अपनी जिम्मेदारी ही तो निभाई किसी पर कोई अहसान तो किया नहीं ...प्यार उसने किया था तो जिम्मेदारी भी उसने निभाई बात यहाँ तक न्याय संगत है अब इसमें आगे भावनाओं का तड़का न लगाइए ....प्यार आप करेंगे तो उसके प्रतिफल या प्रसाद या अवसाद की जिम्मेदारी मोहल्लेवाले या समाज थोड़े ही निभाएगा ... आपने मोहल्ले या समाज से प्यार थोड़े ही किया था ?... आपने जिससे प्यार किया था वह गुजर गया या गुजर गयी या पलायन कर गया ...इसी परिदृश्य में सिंगिल पेरेंट का दायित्व प्रायः माँ पर ही प्राकृतिकरूप से आता है ...आदमी बनने की प्रक्रिया में हम अपने आपको पशु के बेहद करीब पाते हैं ...देखिये गाया/भेंस/ बकरी /कुतिया आदि या यों कहें कि प्रायः स्तनपायी ( mammalia ) वर्ग के प्राणी सिंगिल पेरेंट होते हैं ...जो प्राणी पंख वाले होते हैं वह सिंगिल पेरेंट नहीं होते यानी माता-पिता मिल कर अपने प्यार के उत्पाद को पालते हैं ...सरीसृप यानी reptile भी सिंगिल पेरेंट होते हैं ...इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पहले महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए समाज स्त्री -पुरुष के दैहिक रिश्तों को नियंत्रित संचालित और संपादित करता था ...लेकिन जब सेक्स के लिए लोगों ने सामाजिक मूल्यों और आचार संहिता को धता बता दी तो फिर समाज की जिम्मेदारी भी नहीं रही ...."मैं चाहे ये करूँ...मैं चाहे वो करूँ ...मेरी मर्जी ." या लिव इन रिलेशनशिप तो फिर भुगतो ... समाज से पूछ नहीं तो समाज की जवाबदेही क्यों हो ? ...पर अभी बात अधूरी है , पूरी तो होने दीजिये ...एक बड़ा वर्ग वह भी तो है जो अपने कार्य की स्थितियों के कारण सिंगिल पेरेंट हैं जैसे सेना / मर्चेंट नेवी / प्रवजन मजदूर ( migrant labour ) आदि ... इनके बच्चों को भी सिंगिल पेरेंट पर ही निर्भर रहना पड़ता है और किसी हादसे में पति /पत्नी में से किसी एक की मृत्यु पर भी ...और वह दम्पति भी जो साथ चलने की कोशिश में तो थे पर साढ़ चल न सके और तलाक /डाइवोर्स हो गया और बच्चोंबच्ज्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी माँ पर आ गयी...ऐसी स्थिति में बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी किसकी हो ?...और अब संयुक्त परिवार भी तो नहीं ... पर ऐसे में उस नन्हें नागरिक का दोष क्या है जो धरती पर आ गया और उसे बड़ा होना है ? इस लिए सिंगिल पेरेंट की बात नहीं बात तो सिंगिल पेरेंट के बच्चों की है और उनकी मानसिकता में आयीं ख़राशों व मनोविज्ञान के फफोलों की होनी चाहिए ...आपके मजे / गलत निर्णय / प्रयोग की सजा वह क्यों भुगते ? ...पर दाम्पत्य या प्यार के प्रयोग की असफलता का बोझ स्त्री को ही ढोना पड़ता है पुरुष को नहीं क्यों कि पुरुष पर बच्चों की जिम्मेदारी से भाग खड़े होने का विकल्प है जबकि माँ विकल्प नहीं संकल्प का नाम है . मैंने यहाँ माँ की भावनाओं का वस्तुनिष्ठ परीक्षण करने का कोई दुस्साहस नहीं किया है ...बस यहाँ भावनात्मक नहीं भौतिक स्थितियों की समीक्षा है ." ---- राजीव चतुर्वेदी
Sunday, June 14, 2015
सिंगल पेरेंट ... अरे , अकेले तो पेरेंट बने नहीं थे फिर क्या हो गया ?
"Single Parent ...सिंगल पेरेंट ... अरे , अकेले तो पेरेंट बने नहीं थे फिर क्या हो गया ? ... और जो हो गया सो हो गया ...आपके गलत निर्णय का खामियाजा आपके बच्चे क्यों भुगतें --- प्रायः इस अपराधबोध से शुरू होती है सिंगिल पेरेंट की कहानी ...जिसको अपराध बोध के साथ दायित्वबोध भी होता है वह सिंगिल पेरेंट का किरदार या जिम्मेदारी निभाता है ...चूंकि माँ प्राकृतिक संरक्षक होती है सो प्रायः माँ ही सिंगिल पेरेंट का दायित्व निभाती है या कभी कभी भुगतती है ...लव कुश की माँ सीता सिंगिल पेरेंट थी ...कर्ण की माँ कुन्ती सिंगिल पेरेंट थीं ... ईसा मसीह की माँ मैरी सिंगिल पेरेंट थीं ...शिवाजी की माँ जीजाबाई सिंगिल पेरेंट थीं ...झांसी की रानी लक्ष्मी बाई सिंगिल पेरेंट थी ...पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन खां की माँ सिंगिल पेरेंट थीं ...कमला नेहरू के बाद जवाहरलाल नेहरू इंदिरा गाँधी के सिंगिल पेरेंट थे और इंदिरा गाँधी राजीव तथा संजय गाँधी की सिंगिल पेरेंट थीं ...पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो बेनजीर के सिंगिल पेरेंट थे ...यह इतना महान काम भी नहीं की जितना महान बता कर कुछ लोग अपनी पीठ थपथापा रहे हैं ...प्यार की दैहिक अभिव्यक्ति का उत्पाद हैं बच्चे ...तो बच्चे तो होने ही थे ...हो गए ...कोई व्यक्ति अपने हाथ झाड़ कर चल दिया और किसी ने अपनी जिम्मेदारी निभाई ...जो हाथ झाड़ कर चल दिया वह निंदनीय है ...गैर जिम्मेदार है और जिसने अपनी जिम्मेदारी निभाई उसने महज अपनी जिम्मेदारी ही तो निभाई किसी पर कोई अहसान तो किया नहीं ...प्यार उसने किया था तो जिम्मेदारी भी उसने निभाई बात यहाँ तक न्याय संगत है अब इसमें आगे भावनाओं का तड़का न लगाइए ....प्यार आप करेंगे तो उसके प्रतिफल या प्रसाद या अवसाद की जिम्मेदारी मोहल्लेवाले या समाज थोड़े ही निभाएगा ... आपने मोहल्ले या समाज से प्यार थोड़े ही किया था ?... आपने जिससे प्यार किया था वह गुजर गया या गुजर गयी या पलायन कर गया ...इसी परिदृश्य में सिंगिल पेरेंट का दायित्व प्रायः माँ पर ही प्राकृतिकरूप से आता है ...आदमी बनने की प्रक्रिया में हम अपने आपको पशु के बेहद करीब पाते हैं ...देखिये गाया/भेंस/ बकरी /कुतिया आदि या यों कहें कि प्रायः स्तनपायी ( mammalia ) वर्ग के प्राणी सिंगिल पेरेंट होते हैं ...जो प्राणी पंख वाले होते हैं वह सिंगिल पेरेंट नहीं होते यानी माता-पिता मिल कर अपने प्यार के उत्पाद को पालते हैं ...सरीसृप यानी reptile भी सिंगिल पेरेंट होते हैं ...इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पहले महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए समाज स्त्री -पुरुष के दैहिक रिश्तों को नियंत्रित संचालित और संपादित करता था ...लेकिन जब सेक्स के लिए लोगों ने सामाजिक मूल्यों और आचार संहिता को धता बता दी तो फिर समाज की जिम्मेदारी भी नहीं रही ...."मैं चाहे ये करूँ...मैं चाहे वो करूँ ...मेरी मर्जी ." या लिव इन रिलेशनशिप तो फिर भुगतो ... समाज से पूछ नहीं तो समाज की जवाबदेही क्यों हो ? ...पर अभी बात अधूरी है , पूरी तो होने दीजिये ...एक बड़ा वर्ग वह भी तो है जो अपने कार्य की स्थितियों के कारण सिंगिल पेरेंट हैं जैसे सेना / मर्चेंट नेवी / प्रवजन मजदूर ( migrant labour ) आदि ... इनके बच्चों को भी सिंगिल पेरेंट पर ही निर्भर रहना पड़ता है और किसी हादसे में पति /पत्नी में से किसी एक की मृत्यु पर भी ...और वह दम्पति भी जो साथ चलने की कोशिश में तो थे पर साढ़ चल न सके और तलाक /डाइवोर्स हो गया और बच्चोंबच्ज्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी माँ पर आ गयी...ऐसी स्थिति में बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी किसकी हो ?...और अब संयुक्त परिवार भी तो नहीं ... पर ऐसे में उस नन्हें नागरिक का दोष क्या है जो धरती पर आ गया और उसे बड़ा होना है ? इस लिए सिंगिल पेरेंट की बात नहीं बात तो सिंगिल पेरेंट के बच्चों की है और उनकी मानसिकता में आयीं ख़राशों व मनोविज्ञान के फफोलों की होनी चाहिए ...आपके मजे / गलत निर्णय / प्रयोग की सजा वह क्यों भुगते ? ...पर दाम्पत्य या प्यार के प्रयोग की असफलता का बोझ स्त्री को ही ढोना पड़ता है पुरुष को नहीं क्यों कि पुरुष पर बच्चों की जिम्मेदारी से भाग खड़े होने का विकल्प है जबकि माँ विकल्प नहीं संकल्प का नाम है . मैंने यहाँ माँ की भावनाओं का वस्तुनिष्ठ परीक्षण करने का कोई दुस्साहस नहीं किया है ...बस यहाँ भावनात्मक नहीं भौतिक स्थितियों की समीक्षा है ." ---- राजीव चतुर्वेदी
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1 comment:
" Parent Have great life if their children have great life and children have great life if their parent have great life"
Nice article !
मेरे ब्लॉग Dynamic पर आपका स्वागत है
manojbijnori12.blogspot.com
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