Thursday, June 11, 2015

योग क्या है ? ...संयोग ...वियोग ...उपयोग ...जीवन की यात्रा में आप कहाँ हैं ?

" योग क्या है ? ...संयोग ...वियोग ...उपयोग ...जीवन की यात्रा में आप कहाँ हैं ?...किस दिशा दशा में हैं ? ...संयोग से सृजन होता है और सृजन होते ही विसृजन ( जिसे अपभ्रंश करके लोग "विसर्जन" कहते हैं ) की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है ...जिन तत्वों के योग से हम अस्तित्व में आये उनका वियोग प्रारंभ हो जाता है ...क्षरण की प्रक्रिया ...विकिरण की प्रक्रिया ...हम ब्रम्हांड में विलीन होने लगते हैं ... जन्म के बाद / सृजन के बाद फिर जन्म तो होना नहीं है ... जन्म होते ही मरने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है ...मृत्य निश्चित है ...मृत्यु हमारे सृजन का विसृजन है ...आन्तरिक तत्वों के संगठन का विघटन है ...और इस विसृजन की ...इस विघटन की प्रक्रिया को यानी मृत्यु को आगे धकेलना ...टालना ...विलंबित करना तभी संभव है जब विघटन को , विसृजन को , वियोग को रोका जाए या उसकी प्रक्रिया को धीमा कर दिया जाए ...इसी आंतरिक तत्वों के वियोग को रोकना ही "योग" है . हिन्दवी लोकचेतना कहती है --- " क्षिति जल पावक गगन समीरा / पंच तत्व का अधम शरीरा ." तो इस्लाम को इह्लाम होता है --" जिन्दगी क्या है अनासिर का जहूर -ऐ -तरतीब / मौत क्या है इन्हीं अजीजाँ का परेशान होना ." कुल मिला कर बात एक ही है ...जब स्त्री पुरुष /प्रकृति /परमेश्वर , मौसम , वातावरण ,आकांक्षा ...देह ...दैहिक रसायन का संयोग होता है तो शुक्राणु ( क्रोमोसोम ) का प्रवाह होता है ...असंख्य शुक्राणु ( क्रोमोसोम ) प्रवाहित होते हैं ...पर अधिकाँश योग नहीं बना पाते तो संयोग की अवस्था के पहले ही समाप्त हो जाते हैं ...निष्प्रयोज्य ...कुछ शुक्राणु ( क्रोमोसोम ) का भी संयोग होता है ...अगर पुरुष-स्त्री की तरफ से प्रवाहित शुक्राणु ( क्रोमोसोम ) में Y Y शुक्राणु ( क्रोमोसोम ) का योग हुआ तो यह संयोग लड़की (स्त्री ) का सृजन करता है और यदि पुरुष -स्त्री की तरफ से प्रवाहित शुक्राणु ( क्रोमोसोम ) में XY शुक्राणु ( क्रोमोसोम ) का योग हुआ तो वह संयोग लड़के (पुरुष ) का सृजन करता है . लड़की (स्त्री ) में जब तक यह योग बना रहता है उसका स्त्रीत्व बना रहता है और जब इस योग में वियोग की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है स्त्रीत्व जाने लगता है ...मोनोपौज़ की आहट से बौखलाहट होती है ...जिन्दगी जा रही है ...दांत साथ निभाना कम करते हैं ...जिन्दगी जा रही है ...सर पर बाल कम होने लगते हैं सफ़ेद होने लगते हैं ...जिन्दगी से रंग जा रहा है ...जिन्दगी जा रही है ... चेहरे पर झुर्रियां आ चली हैं ...शरीर के अंग स्पेयर पार्ट्स चरमराने लगे हैं ...दर्द करने लगे हैं ...योग वियोग में बदल रहा है ...रोको !! ...रोको !! ...पर कैसे ? ...लड़के (पुरुष ) की जिन्दगी में भी यही हो रहा है ...मन और शरीर का संयोग सृजन में स्त्री का सहायक था साझीदार था ...अब मन और शरीर का योग धीरे धीरे वियोग की तरफ चल पड़ा है ...मन में कामाकान्क्षा है पर शरीर सहयोग नहीं दे रहा ...मन में रस है , अच्छा भोजन करने की इच्छा है पर पाचन क्रिया साथ नहीं दे रही ...मन दौड़ रहा है और शरीर दौड़ नहीं पा रहा घिसट रहा है ...वह योग जो हर रास रंग स्वाद में संयोग बनाता था अब असहयोग कर रहा है ...वियोग की और चल पड़ा ...जीवन जा रहा है ...योग टूट रहा है ......रोको !! ...रोको !! ...पर कैसे ?...यही वह अवसर है जब आपको योग की जरूरत है ...बेहद जरूरत है ...पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है ...मन शरीर और शरीर के विभिन्न अंग आपस में योग की अवस्था में होंगे तो संयोग भी संभव है ...और संयोग में जीवन संगीत निकलेगा ...सुन नहीं सकोगे इस संगीत को अनुभूति करोगे ...और अगर मन शरीर और शरीर के विभिन्न अंग आपस में असहयोग की अवस्था में होंगे तो वियोग अवश्यमभावी है ...और इस वियोग में ...शरीर के मन और चेतना के वियोग में शरीर के विभिन्न अंग परस्पर असहयोग करेंगे ...असहयोग में अशांति होगी ...शरीर के विभिन्न अंग कराहेंगे ...चीखोगे / रोओगे ...आत्मा आर्तनाद करेगी ...जब तक योग है संयोग की संभावना है तब तक सामंजस्य है और सामंजस्य को ही संगीत कहते हैं ...जीवन संगीत ...जैसे ही विभिन्न अंगों की ...शरीर और मष्तिष्क की यह लयबद्धता टूटी चीख पड़ोगे ...जीवन का संगीत खो चुके होगे और शोर निकलेगा ...यह वियोग की सुरूआत है ..रोको इसे ...इसके लिए जरूरी है योग ...योग माने Integration ... कुछ का integration हुआ ही नहीं ...कुछ disintegrate होगये ...कुछ की Integrity Doubtful है ....योग का विरोध करने वाले लोगों की Integrity Doubtful है ... Integrity माने व्यक्तित्व की एकजुटता अक्षतता निष्ठा . ---- योग ...संयोग ...वियोग ...उपयोग ...जीवन की यात्रा में आप कहाँ हैं ? ...अपने बिखरते जीवन को बटोरिये ...जीवन के इसी बिखराव के बटोरने की क्रिया को ही तो "योग" कहते हैं ." ------ राजीव चतुर्वेदी

2 comments:

Onkar said...

सही कहा

मन के - मनके said...

धन्यवाद,राजीव जी,
बहुत ही प्रभावी ढंग से समझाया है,योग के महत्व को.
जीवन में आप कहां है,
अपने बिखरते जीवन को बटोरिये
जीवन के इसी बिखराव के बटोरने की प्रक्रिया को
योग कहते हैं.
अधिक से अधिक लोेगों तक पहुंचे--यह संदेश
इसी शुभकामना के साथ