" चुप ...बिलकुल चुप पाखंडियो ...!!
किसानों की आत्म हत्या पर घडियाली आँसू बहा कर अपने सिवा सभी को कोसते पाखंडियो ...अगर गेंहूं 25/- रुपये किलो हो जाए तो हम में से कितने लोग हैं जो खुश होंगे ?
दवा मंहगी , दारू मंहगी , बिजली मंहगी ,डीज़ल मंहगा ...एक एक कर सारे औद्योगिक उत्पाद मंहगे ...कारें मंहगी , शिक्षा मंहगी , चिकित्सा मंहगी ...पर जैसे ही कृषि उत्पाद मंहगे होते हैं चिल्लाने लगते हो ?...क्या किसान को अपने बेटे को पढ़ाना नहीं है ? ...क्या किसान को इलाज नहीं करवाना है ? ...फिर उसके उत्पाद न मंहगे हों बाकी सभी के उत्पाद मंहगे हों ;---क्यों ? ...क्योंकि यह द्वंद्व है खाने वाले और खिलाने वाले का ...हम सस्ता खाना चाहते हैं और किसान को उसके उत्पादन का तर्क संगत मुनाफा तो दूर उत्पादन लागत भी नहीं देना चाहते ...परिणाम कि आज कृषि अलाभकारी व्यवसाय है ...खेतों में फसल की जगह प्लौट उगने लगे हैं .
कल्पना करिए कि आपके यहाँ बेटे का रिश्ता ले कर कोई आया है ...आप स्वाभाविक जिज्ञाषा से पूछते हैं -- "श्री मान आप क्या करते हैं ?" उत्तर मिलता है कि शराब का काम करते हैं तो आपके मन में उसका दबदबा कायम हो जाता है और अगर वह कहे कि-- " दूध बेचते हैं " तो आपकी नज़र में वह गिर जाता है .--- यह है आपका चरित्र . परिणाम शराब मंहगी और दूध सस्ता है फिर भी शराब की दुकानों पर भीड़ है और दूध की दुकानों पर सन्नाटा है ...फलों के जूस की दूकानें ध्वस्त करते मुनिस्पेलिटी के लोग आपने देखे होंगे पर क्या कभी शराब की दूकान ध्वस्त करते किसी सरकारी अमले को देखा है ?...अगर शराब 200/ रुपये लिटर लाइंन लगा कर बिक रही है तो दूध 250/- लिटर क्यों नहीं ?...फलों का जूस 300/- लिटर क्यों नहीं ? ...करके देखो पूंजी का प्रवाह शहर से गाँव की तरफ हो जाएगा . पर तुम पाखंडी हो किसानों के लिए सिंथेटिक आंसू बहाने वाले सुविधाजीवी शहरी हो कृषि उत्पादन का मंहगा होना किसानो को लाभ देगा ...कृषि को लाभकारी बनाएगा ...गाँव का पलायन शहरों की और रुक जाएगा फिर तुमको शहरों में सस्ते मजदूर /नौकर / कर्मचारी नहीं मिलेंगे ...इण्डिया को भारतीय गुलामों की जरूरत है ....रोशनी ,रास्ते ,राशन और रोजगार पर शहरों का कब्ज़ा है ...ट्यूब लाइटें शिर्फ़ शहरों में ही जगमगाती हैं और असली ग्रामीण भारत में अभी अँधेरा है .
आपको टीवी के, वाशिंग मशीन के, कार के, यात्रा के, शिक्षा के, चिकित्सा के, मंहगा होने पर कोई खास बेचैनी नहीं होती किन्तु कृषि उत्पाद के मंहगा होते ही बहुत बेचैनी होती है क्योंकि आप खुद किसान को फलते फूलते नहीं देखना चाहते ....सातवें वेतन आयोग के लिए उत्सुक लोगो आप नहीं चाहते की कृषि लाभकारी हो ...आप नहीं चाहते कि कृषि उत्पाद मंहगे हों ...वर्तमान मूल्य पर कृषि अलाभकारी है ...घाटे की है ...अगर वास्तव में चाहते हो कि किसान आत्महत्या न करे तो आवाज़ दो ...गेंहूं मंहगा हो ...आलू मंहगा हो ...अनाज /सब्जी मंहगी हों ...दूध मंहगा हो ...घी /मक्खन मंहगा हो ...सभी कृषि उत्पाद मंहगे हों ...क्या हम इतने ईमानदार हैं कि कृषि उत्पादों को मंहगा करने का राष्ट्रव्यापी आन्दोलन छेड़ेंगे ? ...नहीं न तो फिर हम भी जिम्मेदार हैं हर किसान की आत्म हत्या के ." ---- राजीव चतुर्वेदी
"फसल ...
खडी होने तक हर हरामखोर फासले पर रहता है
और अपने बच्चों से भी फसल से फासला रखने को कहता है
फसल की प्यास छीन कर वह स्वीमिंगपूल में पानी भरता है
फसल में शामिल है किसान की उदासी
फसल में शामिल है नहर की खंती
फसल में शामिल है सूरज की किरण और उसमें पकता हुआ किसान
फसल में शामिल है नीलगाय से जूझता किसान
फसल में शामिल है किसान का वह पसीना
जिसको क्या समझेगी कोई हरामखोर हसीना
फसल में शामिल है पाताल का पानी और थोड़ी ओस
फसल में शामिल है आढ़तिये की मक्कारी और किसान का जोश
कुछ हवा ...थोड़ी चांदनी ...सहेज के रखा गया किसान की बेटी का दहेज़
फसल में शामिल है किसान के बच्चे के मटमैले से सपने
फसल में शामिल हैं किसान के कुछ अपने
फसल में शामिल है टाट -पट्टी के स्कूल की भी न चुकाई गयी फीस
फसल में शामिल है गाय का रम्भाना ...बैल का मर जाना
...ट्रेक्टर की कमर तोडती किश्त
यों समझ लो कि फसल में पूरी सृष्टि और थोड़ी वृष्टि शामिल है
फसल में शामिल है पूरी की पूरी कायनात
फसल में नहीं शामिल हैं कोई अर्जुन ...कोई नागार्जुन ...हम और आप
हम शामिल हो जायेगे तो यह साहित्यिक लफ्फाजी कौन करेगा ?
फसल ...
खडी होने तक हर हरामखोर फासले पर रहता है
और अपने बच्चों से भी फसल से फासला रखने को कहता है . " ---- राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
very true write up
वाजिब सवाल आपने उठाया है पर सब चुप क्यूँ है...
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