"इस देश के एक कोने में लोग अफज़ल गुरू को शहीद बता रहे हैं ... दूसरे कोने
में भिंडरावाले को शहीद बताया जा रहा है ...जिनको विदेशी आस्था का अस्थमा
है उनको बिन लादेन की शाहदत विश्व मानवता के लिए अपूर्णीय क्षति लगती है।
...देश के स्वदेशी कोने में कुछ लोग कराह रहे हैं --- "हुतात्मा गोडसे"
...कौन थे नाथू राम गौडसे ? ...इनकी एक असफल सी प्रेस थी और एक दुपतिया
अख़बार निकलता था ...यह अंग्रेजों और मुसलमानों के प्रति इतने नेक दिल थे कि
यद्यपि इन्हें रिवोल्वर चलाना आता था ...इनके पास उस जमाने
में विदेशी रिवोल्वर के अवैध सप्लायर थे फिर भी कभी किसी अंग्रेज या
मुसलमान के विरुद्ध अपने अखबार नें कुछ भी नहीं लिखा और कभी किसी अंग्रेज
या मुसलमान के गोली तो दूर गुलेल से भी एक कंकड़ नहीं मारा । आज़ादी के किसी
आन्दोलन न में कभी भाग लिया न जेल गए ।...खैर यह अमन पसंद शांतिदूत आज़ादी
मिलने तक चुप रहा ...आखिर और कब तक चुप रहता ? ...जिन्ना से नाराज़ था
...मुसलमानों से नाराज था ...और चुप नहीं रह सका ...निहत्थे गाँधी को
उपासना स्थल जाते में मार दिया । ...और इस प्रकार देश के फुटकर कोनों में
हुतात्मा नाथू राम गोडसे अमर हुआ . तेरा कातिल मेरा मसीहा का उत्तर आधुनिक
काल जारी था ...और ...और आने वाली नश्लों को हम बता रहे थे ...अपने बच्चों
को हम संस्कार दे रहे थे --- मसीहा बनने के लिए कातिल होना अनिवार्य है
।"----- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
बहुत ही सार्थक व तथ्यपरक आलेख
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