" सरस्वती ज्ञान और विद्या की देवी है ...सभी की सामान ...काश , हमारी होती
...काश एकलव्य और अर्जुन को एक सा प्यार दे पाती ...कुछ लोगों ने सरस्वती
का अपहरण किया और पता नहीं उसे किस ब्यूटी पार्लर में ले गए कि वह लक्ष्मी
के स्वरुप में दिखने लगी ...शिक्षा की आढतें चल निकलीं ...निजी कोचिंग
,स्कूल / कॉलेज /वश्वविद्यालय ...सम्पन्नों के बच्चों को पढ़ाने के लिए
विपन्नों के बच्चों के अंगूठे काट लिए इन्होने ...शिक्षा अब भिक्षा में
नहीं मिलती थी बिक रही थी ...शिक्षा उपहार नहीं बाज़ार थी ...अचानक
हमारे बच्चों ने जाना कि सरस्वती की कृपा आभूषण की तरह है आवश्यकता नहीं
...योग्य बेरोजगार नवजवानों की भीड़ के आगे किसी सोनियाँ , लालू , मुलायम
,पासवान ,महाजन ,नितीश की योग्य औलादें इठला रही थीं ...अचानक हमने देखा
लक्ष्मी की आधात पर सरस्वती नौकरी कर रही थी ...योग्य लोग टाटा /अम्बानी की
मेहरबानी पर कुर्बानी दे रहे थे ...याद है , शिक्षा के बाजारीकरण के लिए
जो समिति बनी थी उसमें कोई शिक्षाविद नहीं था --- "कुमार मंगलम बिरला -अनिल
अम्बानी समिति " कवि ह्रदय अटल बिहारी जी ने बनायी थी और हमारे शान्ति के
कबूतर हमेशा हमेशा को उड़ गए थे ...शिक्षा इंद्रा जी के काल से मनमोहन काल
तक काल के गाल में ही गयी है ...हमारे भाल पर सरस्वती तिलक नहीं लगा सकी
..."सभी को सामान और मुफ्त शिक्षा" का नारा संविधान के नीति निदेशक तत्वों
में दर्ज एक लावारिस सा जुमला है ...आज भी अभिजात्य स्कूलों के आगे गाँव के
टाटा पट्टी वाले असली भारत के स्कूल मुँह बाए खड़े हैं ...लक्ष्मी के
पुत्रों के लिए सरस्वती के पुत्र सेवक /नौकर चाकर ढाले जा रहे हैं
...जिन्होंने सरस्वती की कृपा खरीद पायी उन्होंने सरस्वती से संस्कार नहीं
लिए बल्कि सरस्वती को सरकारी नौकरी पाने के लिए सनद की तरह इस्तेमाल किया
...और फिर इनके हाथों में सरस्वती एक कारगर असलहा बन चुकी थी ...सरकारी
कर्मचारियों ने अपनी औकात भर पद का असलह लगा कर लूटा IAS ने लूटा, PCS ने
लूटा, SSP ने लूटा, Dy,SP ने लूटा, थाना इंचार्ज ने लूटा , दरोगा / सिपाही
ने अपनी औकातभर लूटा ,डॉक्टरों ने लूटा , RTO /ARTO ने लूटा, टेक्स
अधिकारियों ने लूटा , अमीनो ने लूटा, कमीनो ने लूटा, ... शिक्षा विभाग में
BSA /DIOS में तो सरस्वती की सेविकाओं यानी महिला अध्यापिकाओं की इज्जत तक
को जिले- जिले, ब्लोक- ब्लोक लूटा ...लुटा पिटा आदमी जब न्यायलय गया तो उसे
वकीलों से ले कर पेशकारों ने लूटा ...सरस्वती पुत्रों की इस लूट को देख कर
पत्रकार कब तक चुप रहता सो उसने भी लूटा ...सरस्वती पुत्र गब्बर के सांभा
बन गए थे और गुजरी बसंत पंच्मियों से ले कर इस बसंतपंचमी तक संस्कारों की
बसन्ती ई अस्मत इन लुटेरों से खतरे में ही थी . सरस्वती हम सबकी है ...हम
सभी का सामान शिक्षा का अधिकार है --- क्या हम इसे एक आन्दोलन नहीं बना
सकते ? " ----- राजीव चतुर्वेदी
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