"शरद पूर्णिमा ... कृष्ण की महारास लीला ...शरद ऋतु का प्रारम्भ
होते ही प्रकृति परमेश्वर के साथ नृत्य कर उठती है एक निर्धारित लय और ताल
से ...त्रेता यानी राम के युग की मर्यादा रीति और परम्पराओं में द्वापर
में परिमार्जन होता है ...स्त्री उपेक्षा से बाहर निकलती है ...द्वापर में
कृष्ण सामाजिक क्रान्ति करते हैं फलस्वरूप स्त्री -पुरुष के समान्तर कंधे
से कन्धा मिला कर खड़ी हो जाती है
...स्त्री पुरुष के बीच शोषण के नहीं आकर्षण के रिश्ते शुरू होते है
..."कृष" का अर्थ है खींचना कर्षण का आकर्षणजनित अपनी और खिंचाव ...द्वापर
में जिस नायक पर सामाजिक शक्तियों का ध्रुवीकरण होता है ...जो व्यक्ति कभी
सयास और कभी अनायास स्त्री और पुरुषों को अपनी और खींचता है ...सामाजिक
शक्तियों का कर्षण करता है कृष्ण कहलाता है ....शरद पूर्णिमा पर खगोल के
नक्षत्र नाच उठते हैं ...राशियाँ नाच उठती है और राशियों के इस लयात्मक
परिवर्तन को ...राशियों के इस नृत्य को "रास " कहते हैं ...खगोल में
राशियों का नृत्य अनायास यानी "रास" और भूगोल में इन राशियों के प्रभाव से
प्रकृति का आकर्षण और परमेश्वर का अतिक्रमण वह संकर संक्रमण है जो सृजन
करता है ...दुर्गाष्टमी के विसृजन के बाद पुनः नवनिर्माण नव सृजन का संयोग .
कृष्ण स्त्री -पुरुष संबंधों को शोषणविहीन सहज सामान और भोग के स्तर पर भी
सम यानी सम्भोग (सम +भोग ) मानते थे ...जब खगोल में राशियाँ नृत्य करती
हैं और रास होता है ...जब भूगोल में प्रकृति परमेश्वर से मिलने को उद्यत
होती है ...जब फूल खिल उठते हैं ...जब तितलियाँ नज़र आने लगती हैं ...जब रात
से सुबह तक समीर शरीर को छू कर सिहरन पैदा करता है ...जब युवाओं की तरुणाई
अंगड़ाई लेती है तब कृष्ण का समाज भी आह्लाद में नृत्य कर उठता है ...खगोल
में राशियों के रास यानी कक्षा में नृत्य के साथ भूगोल भी नृत्य करता है और
उस भूगोल की त्वरा को आत्मसात करने की आकांक्षा लिए समाज भी नृत्य करता है
...खगोल में राशियों के नृत्य को रास कहते हैं ...राशियाँ नृत्य करती हैं
धरती नृत्य करती है ...अपने अक्ष पर घूमती भी है ...चंद्रमा , शुक्र ,मंगल
, बुध शनि ,बृहस्पति आदि राशियाँ घूमती हैं , नृत्य करती हैं ...धरती
घूमती है और नाचती भी ...खगोल और भूगोल नृत्य करता है ...और उससे प्रभावित
प्रकृति भी ...खगोल ,भूगोल और भूगोल पर प्रकृति नृत्य करती है राशियों की
त्वरा (फ्रिक्येंसी ) पर नृत यानी रास करती है ...सभी राशियों के अपने अपने
ध्रुव हैं ...ध्रुवीकरण हैं ...भौगोलिक ही नहीं सामाजिक ध्रुवीकरण भी हैं
...द्वापर में यह ध्रुवीकरण जिस नायक पर होता है उसे कृष्ण कहते हैं ...और
खगोल से भूगोल तक राशियों से प्रभावित लोग कृष्ण को केंद्र मान कर रास करते
हैं ." ------- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
बहुत सारगर्भित प्रस्तुति...
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