"मैं झरने का बहता पानी तुम बोतल के शुद्ध नीर हो ,
मैं ममता का शुद्ध दूध हूँ और तुम बाजारू से पनीर हो
मैं जंगल का हूँ पेड़ जूझता अड़ा खड़ा झाझावातों से
तुम बंगले के गमले में उगे हुए से इक पौधे हो
मैंने सीखे शब्द आचरण की अंगड़ाई में
तुमने था कुछ रटा व्याकरण की पढाई में
मैं इस मिट्टी का बेटा तुम बोर्नविटा के बेटे हो
मैं सियाचिन पर खड़ा हुआ हूँ तुम एसी में लेटे हो
राष्ट्रप्रेम मेरा लोकल है तुम पर ग्लोबल सा गुमान है
तुम को टाई पर घमंड है
बहनों ने जो तिलक लगाया वह ही मेरा स्वभिमान है
मैं भारत की इबारत का हर्फ़ बना तो गर्व करूंगा
तुम एक इंडिया में ओडोमास लगा कर सोना
सेंसेक्स और फेयरसेक्स से रिलेक्स जब हो जाना तो
यह बतलाना
भारत क्यों भयभीत खड़ा है ?
और इण्डिया नहीं उगाता फिर भी खता क्यों मोटा है ?
तुम भारत पर भारी हो, मैं भारत का आभारी हूँ
आचरण के इस अंतर का व्याकरण मुझको समझाओ
पोषण है कर्तव्य हमारा, शोषण है अधिकार तुम्हारा
ऐसा अब मत और बताओ
मेरी जान दाव पर है तो तुम भी अपनी जान लगाओ ."-----राजीव चतुर्वेदी
मैं ममता का शुद्ध दूध हूँ और तुम बाजारू से पनीर हो
मैं जंगल का हूँ पेड़ जूझता अड़ा खड़ा झाझावातों से
तुम बंगले के गमले में उगे हुए से इक पौधे हो
मैंने सीखे शब्द आचरण की अंगड़ाई में
तुमने था कुछ रटा व्याकरण की पढाई में
मैं इस मिट्टी का बेटा तुम बोर्नविटा के बेटे हो
मैं सियाचिन पर खड़ा हुआ हूँ तुम एसी में लेटे हो
राष्ट्रप्रेम मेरा लोकल है तुम पर ग्लोबल सा गुमान है
तुम को टाई पर घमंड है
बहनों ने जो तिलक लगाया वह ही मेरा स्वभिमान है
मैं भारत की इबारत का हर्फ़ बना तो गर्व करूंगा
तुम एक इंडिया में ओडोमास लगा कर सोना
सेंसेक्स और फेयरसेक्स से रिलेक्स जब हो जाना तो
यह बतलाना
भारत क्यों भयभीत खड़ा है ?
और इण्डिया नहीं उगाता फिर भी खता क्यों मोटा है ?
तुम भारत पर भारी हो, मैं भारत का आभारी हूँ
आचरण के इस अंतर का व्याकरण मुझको समझाओ
पोषण है कर्तव्य हमारा, शोषण है अधिकार तुम्हारा
ऐसा अब मत और बताओ
मेरी जान दाव पर है तो तुम भी अपनी जान लगाओ ."-----राजीव चतुर्वेदी
3 comments:
बहुत सटीक.
व्यंग-हास-परिहास के साथ-साथ सत्य-कथन.
भारत औकर इंडिया का सही दर्शन।
गज़ब...जबरदस्त...
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