" मैं आसमान का आँचल ओढ़े खड़ी रही
तुम बदल बन का घुमड़े आंधी बन कर उड़े
मैं नदियों सी बहती, धरती सी सहती ,
कुछ गीत हवाओं से कहती
पितृ पहाड़ों से समुद्र तक चल आयी
तुम नाव बने और पार हुए,
मेरे शरीर से टकराए
तुम बाँध बने पर मुझको रोक नहीं पाए
तुम जब आये आंधी बन कर आये और गुजर गए
मैंने जब भी सृजन किया
तब हर विनाश पर तुम कुछ तिर्यक मुस्काए
मैं प्रकृति हूँ मुझको गर्व इसी पर है
पर सच बतलाना
तुम क्या परमेश्वर बन पाए ?" ---- राजीव चतुर्वेदी
तुम बदल बन का घुमड़े आंधी बन कर उड़े
मैं नदियों सी बहती, धरती सी सहती ,
कुछ गीत हवाओं से कहती
पितृ पहाड़ों से समुद्र तक चल आयी
तुम नाव बने और पार हुए,
मेरे शरीर से टकराए
तुम बाँध बने पर मुझको रोक नहीं पाए
तुम जब आये आंधी बन कर आये और गुजर गए
मैंने जब भी सृजन किया
तब हर विनाश पर तुम कुछ तिर्यक मुस्काए
मैं प्रकृति हूँ मुझको गर्व इसी पर है
पर सच बतलाना
तुम क्या परमेश्वर बन पाए ?" ---- राजीव चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment