" जो लोग जिन्दगी के पूर्वार्ध में
अपने गाँव में
कट्टा बनाने का कुटीर उद्योग चलाते थे
खो गए कहीं
जो लोग जिन्दगी के उत्तरार्ध में
मिसाइल बनाते हैं
याद किये जाते हैं
शोहरत बड़े गुनाह को पनाह देती है
अन्न के उत्पादक से ज्यादा प्रतिष्ठित हैं असलहे के उत्पादक
और ऐसी दुनियाँ में
किसी किसान के यहाँ जन्म लेकर बड़ा होना
कोई आसान काम नहीं था
फिर भी मैं बड़ा हुआ
मैं जानता था
सृजन की क्षमता पर विध्वंश भारी है
हर भगवान् असलहाधारी है
मैं छोटा आदमी था
मैंने छोटे गुनाह किये
वह बड़ा आदमी था उसने बड़े गुनाह किये
आदतें नहीं बदली
आचरण नहीं बदले
पर व्याकरण हर बार बदले
किसी ने मुझे शिक्षा के असलहे से नौकरशाह बन कर लूटा
जो कानूनविद थे उन्होंने कानूनी असलहे से लूटा
डॉक्टर ने ज्ञान के असलहे से लूटा
वैज्ञानिक ने विज्ञान के असलहे से लूटा
व्यापारी ने तराजू से लूटा
मैं तो कट्टे वाला था
लुटे -पिटों से लूटता भी क्या ?
शोहरत बड़े गुनाह को पनाह देती है
अन्न के उत्पादक से ज्यादा प्रतिष्ठित हैं असलहे के उत्पादक
और ऐसी दुनियाँ में
किसी किसान के यहाँ जन्म लेकर बड़ा होना
कोई आसान काम नहीं था
फिर भी मैं बड़ा हुआ . " ----- राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
सटीक !!
उनका व्यापार चलता रहे, मानव प्राण छलता रहे।
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