"Food Security Bill यानी खाद्य सुरक्षा बिल
...अच्छा झुनझुना है ...पेप्सी की तरह देश को पिलाया जा रहा है जिससे पोषण
कुछ भी नहीं डकार जोरदार आ रही है ...वह यही चाहते हैं ...वह चाहते हैं आप
भूखे न मरें क्योंकि भूखा मरता आदमी विद्रोह कर देता है
...वह यह भी नहीं चाहते कि आप भरे पेट हों क्योंकि भरे पेट आदमी अपने
अधिकार, नीति, सिद्धांत, राष्ट्रवाद की बात करता है ...वह चाहते हैं कि आप
भूख से पूरी तरह नहीं मरें थोड़े से ज़िंदा भी रहें ताकि उन्हें वोट दे सकें
...वह चाहते हैं आप अधमरे रहें ...अधमरा कुपोषित नागरिक राशन की दुकान या
वोटर की कतार में कातर सा खड़ा पाया जाता है आन्दोलन नहीं करता . उसे अखबार
की ख़बरें नहीं अखरतीं ...उसे दूरदर्शन पर राष्ट्रीय दर्द नहीं देखना ...वह
जब कभी दूरदर्शन देखने का जुगाड़ कर पाता है तो अपनी जिन्दगी में कुछ समय
को ही सही कुछ सुखद कल्पनाएँ आयात कर लेता है ...उसे रूपये का अवमूल्यन,
पेट्रोल की कीमत , टेक्स की दरें, शिक्षा का मंहगा होना, फ्लेट का मंहगा
होना, घोटाले या रोबर्ट्स बढेरा जैसों का समृद्धि का समाज शास्त्र प्रभावित
नहीं करता ...वह यही चाहते है इसीलिए वह चाहते हैं भूखे पेट कुपोषित
अधमरा आदमी जो महज वोटर हो नागरिक नहीं . अगर खाद्य सुरक्षा ही देनी है तो
नौ साल गुजर गए इस गए गुजरे मनमोहन की सरकार को क्या कृषि को लाभकारी बनाने
की कोई योजना आयी ? खेतों में अन्न की जगह अब प्लौट उग रहे हैं इस विनाश
को नगर विकास बताते तुगलको जब आबादी बढ़ेगी और खेत कम हो जायेगे तो कैसे पेट
भरेगा ...तब कृषि उत्पाद महगे तो होंगे पर किसान के यहाँ नहीं आढ़ततिये के
गोदाम पर और मालदार आदमी वह खरीद लेगा गरीब फिर भूखा मरेगा ...जैसे गाय
/भैंस का दूध उसके बच्चे से ज्यादा हमारे बच्चे पीते हैं ...गाँव के बच्चों
से ज्यादा शहर के बच्चे घी /मख्खन खाते है ...वह यही चाहते हैं . --- देश
की भूख में वोट नहीं तलाशिये कृषि को लाभकारी बनाइये ...यह आपके राहुल,
आपकी प्रियंकाएं या प्रियंकाओं के रोबर्ट्स केवल अपना पेट भरते हैं ...देश
का पेट तो किसान भरता है ---उसके लिए क्या किया ?" ---- राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
आओ, सबका पेट भरे हम,
उसमें ठहरी पीर हरे हम।
आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 16.08.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
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