"सदी लंबी
नदी गहरी और लहरें भी अराजक हैं ,
पतवार का हर वार कहता है
किनारे किनारा कर गए
कहीं गहरे में डूबूँगा
मछलियों की आँख कहती है
ये भूखी हैं
इन्हें सुन्दर मैं लगता हूँ
ऊब कर डूबूँ
इससे बेहतर है कि डूबूँ तैर कर
नदी के उस ओर सदी के छोर पर
बहतेी हुए पानी पर
डूबती यह जिंदगी उनवान लिखती है
शाम को जिस नदी के पानी में बहा कर
दिए बोये थे तुम्हारे प्यार ने
उस नदी में नहा कर
सुबह सूरज उग रहा है
मेरी शहादत दर्ज है रोशनी की हर इबारत में ."
------ राजीव चतुर्वेद
नदी गहरी और लहरें भी अराजक हैं ,
पतवार का हर वार कहता है
किनारे किनारा कर गए
कहीं गहरे में डूबूँगा
मछलियों की आँख कहती है
ये भूखी हैं
इन्हें सुन्दर मैं लगता हूँ
ऊब कर डूबूँ
इससे बेहतर है कि डूबूँ तैर कर
नदी के उस ओर सदी के छोर पर
बहतेी हुए पानी पर
डूबती यह जिंदगी उनवान लिखती है
शाम को जिस नदी के पानी में बहा कर
दिए बोये थे तुम्हारे प्यार ने
उस नदी में नहा कर
सुबह सूरज उग रहा है
मेरी शहादत दर्ज है रोशनी की हर इबारत में ."
------ राजीव चतुर्वेद
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