" ज़िंदा विश्वासों में लाशों सा अहसास ,
संवेदना के शब्द बोझिल हैं बहुत ,-- ढोए नहीं जाते
मैं थक कर सो गया था
मेरे कैदी से कोलाहल को शान्ति की चादर उढाओ
कफ़न जो कह रहे हैं लोग
उनको नादान समझ कर माफ़ कर देना
यह सफ़र पूरा हुआ ...
जब हवा का कोई झोंका तुम्हें स्पर्श करके गुजर जाए
मेरी याद को तुम याद कर लेना
तुम जहाँ थे मैं वहाँ पहले भी नहीं था
एक आकार का अहसास था
और अब
एक अहसास का आकार हूँ
मैं जैसा हूँ स्वीकार कर लो
मैं जी कर भी तुम्हारा था
मैं मर कर भी तुम्हारा हूँ ." ----राजीव चतुर्वेदी
संवेदना के शब्द बोझिल हैं बहुत ,-- ढोए नहीं जाते
मैं थक कर सो गया था
मेरे कैदी से कोलाहल को शान्ति की चादर उढाओ
कफ़न जो कह रहे हैं लोग
उनको नादान समझ कर माफ़ कर देना
यह सफ़र पूरा हुआ ...
जब हवा का कोई झोंका तुम्हें स्पर्श करके गुजर जाए
मेरी याद को तुम याद कर लेना
तुम जहाँ थे मैं वहाँ पहले भी नहीं था
एक आकार का अहसास था
और अब
एक अहसास का आकार हूँ
मैं जैसा हूँ स्वीकार कर लो
मैं जी कर भी तुम्हारा था
मैं मर कर भी तुम्हारा हूँ ." ----राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
प्रेम, विश्वास और श्रद्धा समयातीत हो जाती है।
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