Sunday, May 13, 2012

मां न बनने का सामान जब मिलता हो दुकानों पर


" मां न बनने का सामान जब मिलता हो दुकानों पर
तख्तियां भी टंग गयी हों गली कूचे और मकानों पर
उसी तेरी बदनाम बस्ती में तब से रोज आया हूँ
जहां मुझको फेंक गयी थी मां मैं तुझको खोज आया हूँ
कभी कातिल लोक लाजों का तकाजा मुझसे मत करना
जहां से लोग जाते हैं वो रस्ते छोड़ आया हूँ."-------- राजीव चतुर्वेदी









4 comments:

vandana said...

राजीव जी बस पढ़ के अत्मसाद करने योग्य है आप की रचना....पंक्तियों में छुपे अवारावंशियों के दर्द को महसूस किया...और क्या कहूँ...कुछ कहने योग्य हूँ भी कहाँ....!

vandana said...

राजीव जी बस पढ़ के अत्मसाद करने योग्य है आप की रचना....पंक्तियों में छुपे अवारावंशियों के दर्द को महसूस किया...और क्या कहूँ...कुछ कहने योग्य हूँ भी कहाँ....!

Madhuresh said...

"जहां मुझको फेंक गयी थी मां मैं तुझको खोज आया हूँ..."
ओह! बहुत मार्मिक... अच्छी बात है कि पहल हो रही है, एक नए कल में ये कुरीतियाँ शायद न हो!

Amod Kumar Srivastava said...

बहुत ही मार्मिक ... जबरदस्त.... अभिव्यक्ति....