"यह माना तुम्हारा व्यक्तित्व विकराल है
और तुम महज एक संख्या हो
पर
मेरा वजूद एक दशमलव सा
मेरी उपस्थिति से
तुम बहुत छोटे से हो जाते हो
अपने आकार को सहेजते
अपने ही अस्तित्व के संकट से जूझते
अगर मेंरा अस्तित्व तुम्हारे आख़िरी नें आता
तो तुम्हें अखरता नहीं
पर मैं जितना भी पीछे से आगे बढ़ता हूँ
तुम उतने ही छोटे हो जाते ही
मेरा वजूद एक दशमलव सा
दठोना है तुम्हारे विकराल घमण्ड पर ."
----- राजीव चतुर्वेदी
और तुम महज एक संख्या हो
पर
मेरा वजूद एक दशमलव सा
मेरी उपस्थिति से
तुम बहुत छोटे से हो जाते हो
अपने आकार को सहेजते
अपने ही अस्तित्व के संकट से जूझते
अगर मेंरा अस्तित्व तुम्हारे आख़िरी नें आता
तो तुम्हें अखरता नहीं
पर मैं जितना भी पीछे से आगे बढ़ता हूँ
तुम उतने ही छोटे हो जाते ही
मेरा वजूद एक दशमलव सा
दठोना है तुम्हारे विकराल घमण्ड पर ."
----- राजीव चतुर्वेदी