Tuesday, March 26, 2013

जिन्दगी के रंग जब रूठे हों मुझसे,-- क्या करूँ मैं ?

"जिन्दगी के रंग जब रूठे हों मुझसे,-- क्या करूँ मैं ?
रिश्ते रास्तों में कहीं छूटे हों मुझसे ,---क्या करूँ मैं ?
ओढ़ कर तनहाई अपनी सांस की शहनाई सुनता हूँ
अपने अथाही मौन को मैं तोड़ता हूँ अपनी कविता से
संविधानो की शपथ के शब्द जब झूठे हों मुझसे --क्या करूँ मैं ?
" ----राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

रहे प्रतीक्षा, रंग उभरेंगे।